एपीजे अब्दुल कलाम: 2002 में वाजपेयी ने यह मिसाइल चलाई और विपक्षी एकता के परखच्चे उड़ गए
राजनीति में कुछ भी संभव है। 2002 के राष्ट्रपति चुनाव इस कहावत को सच साबित करते हैं। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं चाहते थे कि केआर नारायणन दोबारा राष्ट्रपति बनें। नारायणन पिछले चार सालों में बार-बार वाजपेयी सरकार को असहज करते आए थे। इस वजह से अटल के मन में नारायणन के प्रति थोड़ी नाराजगी रहने लगी थी। वैचारिक रूप से तो नारायणन की असहमति वाजपेयी सरकार से थी ही। जून 2002 में राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवारों पर चर्चा शुरू हुई। उस वक्त कांग्रेस नारायणन के दूसरे कार्यकाल या उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत के प्रमोशन के पक्ष में थी। एनडीए की ओर से महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल पीसी एलेक्जेंडर का नाम तय माना जा रहा था।डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम रेस में कहीं नहीं था। फिर 6 जून को थोड़ी सुगबुगाहट शुरू होती है। 9 जून 2002 को डॉ. कलाम के पास एक फोन आता है... प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का... और अगले 2 दिन के भीतर राजनीति ऐसी करवट लेती है कि बहुत कुछ अकल्पनीय घट जाता है। महज 5 दिन में राजनीतिक बंधन टूटते गए। गठबंधन के दौर में डॉ. कलाम के नाम पर पार्टियों को साथ आते देखना सुखद था, मगर उससे पहले 5 दिन तक राजनीतिक दांव-पेचों का पूरा मैच चला। पढ़िए भारत के 12वें राष्ट्रपति चुनाव की कहानी।
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