जब अंधेरे कमरे में बंद रखा गया मोरारजी को...
कुलदीप नैयर, वरिष्ठ पत्रकार18 जनवरी 1977 को मोरारजी आदतन सुबह उठकर टहलने निकल गए जैसा कि पिछले कई महीनों से एक रूटीन बन गया था। वह दिन भी और दिनों की ही तरह था। रूटीन भले ही नीरस हो, पहले से बेहतर था। जब उन्हें पहली बार हिरासत में लिया गया था तब एक छोटे, अंधेरे कमरे में रखा गया था, जिसकी खिड़कियां तक बंद थीं। विरोध जताने पर उन्हें परिसर में अंधेरा ढल जाने पर टहलने दिया जाता। परिसर में सांपों और बिच्छुओं के चलते वे व्यायाम के लिए अपनी चारपाई के चारों ओर ही टहल लिया करते थे। उस अंधेरे कमरे में रहते हुए उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि बाहर क्या चल रहा है। अखबार भी नहीं दिया जाता था। उन्हें जब एक शहर के गेस्ट हाउस में ले जाया गया, तब अखबार मिलने लगे और मिलनेवालों को भी आने दिया जाने लगा। उस दिन, 18 जनवरी को, उन्होंने खबर पढ़ी कि लोकसभा चुनाव मार्च के अंत में हो सकते हैं। उन्हें इस पर यकीन नहीं हुआ। उनके मन में अपनी ही कुछ शंका थी। उनके थोड़े-बहुत फर्नीचर वाले कमरे में जब कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी दाखिल हुए तो उन्होंने बिना किसी दिलचस्पी के उनकी तरफ देखा। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि उन्हें बिना शर्त रिहा किया जा रहा है। वे उन्हें उनके डुप्लेक्स रोड स्थित मकान तक ले जाने आए हैं। वे अपने साथ एक कार भी लेकर आए थे।
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