'पंजाब में जीत के बाद अरविंद केजरीवाल को थोड़ा सब्र करना होगा'

नीरजा चौधरी, नई दिल्ली: पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की बंपर जीत के बाद अब (Arvind Kejriwal) विपक्षी दलों में एक बड़ा नाम बन चुके हैं और कांग्रेस अब इससे इनकार नहीं कर सकती है। आप के अलावा कई और अन्य राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का शासन है। इसमें बंगाल में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की टीआरएस, तमिलनाडु में एमके स्टालिन की डीएमके, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के साथ) आंध्र प्रदेश में जगह रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस और ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजेडी शामिल है। आप की नजर अब इन 4 राज्यों पर आप के भविष्य के लिए अब वैसे राज्य अहम हो गए हैं जहां कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले में है। पंजाब में जीत के कुछ घंटे बाद ही आप नेताओं ने चार राज्यों के बारे में बात करनी शुरू कर दी। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। इसके अलावा हरियाणा (केजरीवाल का गृह प्रदेश) और दक्षिण में कर्नाटक में आप मौके की तलाश में है। आप उन राज्यों की तरफ अभी नहीं जा रहे हैं जहां क्षेत्रीय दल बीजेपी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं। भारतीय राजनीति में उतार चढ़ाव होता रहता है। इस वक्त बीजेपी अभी काफी मजबूत है। लेकिन केजरीवाल को अब फायदा होता दिख रहा है। पहला- अगर पंजाब के नतीजे को लोगों के बदलते मूड का परिचायक माने तो कुछ अन्य राज्यों में भी जनता नया चेहरा और नई चीजें चाहते हैं। वोटर अब पुराने और घिसे-पिटे चीजों से उबते नजर आ रहे हैं और बदलाव को तैयार दिख रहे हैं। ऐसे में आप को आगे बढ़ने का मौका है। यहां तक कि चार राज्यों में वापसी करने वाली बीजेपी को भी अभी भी तुलनात्मक रूप से नई ताकत मानी जा रही है और ये वोटर्स को रोमांचित भी कर रहा है। दूसरा- ममता की तुलना में 'हिंदी भाषी' होने के कारण हिंदी हार्टलैंड में केजरीवाल की स्वीकार्यता ज्यादा होने की संभावना है। तीसरा- उन्होंने हिंदू वोटर्स की हिंदुत्व को पहचाना है और वह अपनी पार्टी की छवि को उसके अनुसार बदल रहे हैं। वह खुद को प्रो हिंदू के रूप में पेश कर रहे हैं। इस कोशिश में केजरीवाल एंटी मुस्लिम होने से भी बच रहे हैं और इस दौरान हिंदू-मुस्लिम मुद्दों से भी दूरी बनाकर चल रहे हैं। उनको पता है कि बीजेपी विपक्षी दलों को हिंदू विरोधी और मुसलमानों का हितैषी बताती रहती है। पंजाब जीत के बाद केजरीवाल ने अपने 'जोशीले भाषण' में इंकलाब शब्द का प्रयोग किया। यहां वह यह बताना नहीं भूले कि वह राम भक्त हनुमान की पूजा करके आ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह 'प्यार की राजनीति' में विश्वास करती है न कि नफरत की राजनीति में। यह काफी सतर्क लाइन थी। चौथा- उन्होंने दिल्ली में आप को स्थापित किया और अब अन्य राज्यों में इसका विस्तार कर रहे हैं। इस दौरान वह इस बात का ख्याल रख रहे हैं कि दूसरे दलों के असंतुष्टों को ज्यादा मौका नहीं दे रहे हैं। एकबार फिर केजरीवाल युवाओं, महिला, कॉरपोरेट लीडर्स को आप में शामिल होने का आह्वान किया है। जो भी आप में शामिल हुए हैं वो केजरीवाल को नेता स्वीकार कर चुके हैं। हालांकि, केजरीवाल के सामने कई चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो पंजाब ही होगी। उन्होंने दिल्ली मॉडल को पेश करते हुए पंजाब में जीत दर्ज की है। अगर आप को राष्ट्रीय स्तर पर छाना है तो पंजाब में उसका असली टेस्ट होगा और वोटरों की नजर उसपर होगी। बीजेपी भी चाहती है आप की बढ़त? भगवंत मान (Bhagwant Mann) लोकप्रिय हैं लेकिन उनको प्राशसनिक अनुभव नहीं है। लेकिन पंजाब एक कठिन राज्य है। इसके अलावा पंजाब के सीएम का पद काफी शक्तिशाली होता है। आखिर दिल्ली जैसे छोटे राज्य के सीएम केजरीवाल पंजाब को कैसे मैनेज करेंगे। वह वोटर्स को कैसे खुश रखेंगे यह देखने वाली बात होगी। रिमोट कंट्रोल से चलने वाली चीजों से दिक्कत होती है। केजरीवाल की दूसरी चुनौती राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति की गति को लेकर होगी। आखिरी बार उन्होंने 2014 में पूरे भारत में चुनाव लड़ने का फैसला किया था। आप देशभर में चुनाव लड़ी थी। केजरीवाल खुद पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें और उनकी पार्टी असफल हो गई थी। हालांकि बाद में उनकी पार्टी ने दिल्ली में बड़ी जीत दर्ज की थी। फिलवक्त केजरीवाल को सावधानी के साथ राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति दर्ज करानी होगी। इसमें जल्दबाजी नहीं करनी होगी। उन्हें तय करना होगा कि उनका राष्ट्रीय लक्ष्य क्या है। उन्हें यह याद रखना होगा कि छोटी अवधि के लिए बीजेपी उनकी उपस्थिति का स्वागत करेगी। आप कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही है। गुजरात, हरियाणा, हिमचाल प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जहां बीजेपी सत्ता में है वहां बहुकोणीय मुकाबले में उसे लाभ हो सकता है। ऐसे में आप का पहला लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह कम से कम दो और अन्य राज्यों में बेहतर प्रदर्शन कर विपक्षी दलों के बीच निर्विवाद नेता बन जाए। केजरीवाल काफी परिपक्व राजनेता बन चुके हैं और वह 2024 में आप के नेतृत्व वाले विपक्षी बनने की तो अभी नहीं ही सोच रहे होंगे। ऐसा अभी मुश्किल भी दिख रहा है। तो इस परिस्थिति में उन्हें धैर्य रखना होगा और मैराथन दौड़ की तैयारी करनी होगी। (लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं)


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