ग्राउंड रिपोर्ट: राजा के ‘किले’ में इस बार सिलेक्शन नहीं इलेक्शन है...प्रतापगढ़ के कुंडा का हाल जानिए

प्रेम शंकर मिश्र, कुंडा : गुरुवार दोपहर के करीब 12 बजे का वक्त है। कुंडा बाजार में एक जगह ‘राजा भईया यूथ ब्रिगेड’ का बोर्ड लगा है। वहां, आरी निशान वाले पीले गमछा डाले समर्थक बैठे हैं। उसी वक्त बाजार से एसपी प्रत्याशी गुलशन यादव के समर्थकों का काफिला निकलता है। यहां, नारों का शोर और तेज हो जाता है। थोड़ी दूर पर खड़े रत्नेश से नजरें मिलती हैं, तो अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘नजारा देख रहे हैं। इस बार राजा भईया के किले में सिलेक्शन नहीं इलेक्शन हो रहा है। गुरु-चेला में इस बार कमाल की टक्कर है।’ यूं तो प्रतापगढ़ जिले में सात विधानसभाएं हैं, लेकिन, इस बार सबकी नजर दो विधानसभाओं कुंडा और बाबागंज पर टिकी हैं। कुंडा से भदरी रियासत के राजकुमार रघुराज प्रताप सिंह उर्फ ‘राजा भईया’ लड़ते हैं और बाबागंज से उनका ‘नाम’। यानी दो दशक से जीत उसी के हिस्से है, जिस पर राजा भईया का ठप्पा लगा है। सूबे की सरकारें बदली राजा की ‘सरकार’ नहीं कुंडा विधानसभा से राजा भईया 1993 से विधायक हैं। तीस साल में प्रदेश में सात सीएम बने लेकिन यहां रघुराज की सरकार कायम रही। निर्दलीय चुनाव लड़कर कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक की सरकार में राजा भईया मंत्री भी रहे। 2002 में बीजेपी विधायक के अपहरण के आरोप में बीजेपी के समर्थन से सीएम बनीं मायावती ने उन्हें जेल भेज दिया और उनके ऊपर पोटा (आतंकवाद निरोधक अधिनियम) भी लगा दिया। मायावती की सरकार से बीजेपी के समर्थन वापसी की वजहों में यह भी एक वजह रही। जोड़-तोड़ कर 28 अगस्त 2003 को सीएम बनते ही मुलायम सिंह यादव ने पहला आदेश राजा भईया की पोटा वापसी का जारी किया और फिर उन्हें कैबिनेट में मंत्री बनाया। 2002 के बाद एसपी ने तीन चुनावों में राजा के खिलाफ प्रत्याशी तक नहीं उतारा। 2012 में अखिलेश यादव ने उन्हें कारागार मंत्री बनाया लेकिन कुंडा में डीएसपी जियाउल की हत्या के आरोप में उन्हें फिर जेल जाना पड़ा और मंत्रिपद छोड़ना पड़ा। सीबीआई जांच में क्लीन चिट के बाद अखिलेश ने उन्हें फिर मंत्री बनाया था। हालांकि, अब अखिलेश कहते हैं, ‘कौन राजा भईया?’ इस बार यूं बदल गए समीकरणकुंडा में राजा के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां कुल पड़ने वाले वोट में 70% से लेकर 82% तक वोट अलग-अलग चुनावों में राजा के हिस्से गए हैं। लेकिन, इस बार समाजवादी पार्टी ने यहां से राजा के ही कभी सहयोगी रहे गुलशन यादव को उम्मीदवार बनाया है। यादव-मुस्लिम वोटरों की प्रभावी तादाद और एसपी मुखिया अखिलेश यादव की दिलचस्पी के चलते एसपी ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है। अखिलेश की रैली में जा रहे एसपी के समर्थक अनिल यादव बड़े जोश से कहते हैं कि इस बार कुंडा गुंडा मुक्त होगा। उनके पास में ही खड़े एक दूसरे शख्स ने प्रतिवाद किया कि फिर गुलशन क्या है? अनिल ने कहा, लड़ाई लड़ने के लिए ताकत तो चाहिए ही होगी। बीजेपी ने सिंधुजा मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है, उनके पति 2007 में राजा के खिलाफ बीएसपी से लड़ चुके हैं। मगरमच्छ तो है लेकिन दांत नहीं हैंकुंडा रोड के आलापुर चौराहे पर शिवराम मौर्य बीड़ी खींच रहे थे। यह बाबागंज विधानसभा का हिस्सा है। यहां से चुनाव का हाल पूछा तो लंबी कश ली। धुंआ निकालते हुए बोले, यहां तो राजा का जोर है। पूछा, राजा तो कुंडा से लड़ रहे हैं? शिवराम बोले, बाबागंज भी राजा का ही है। विनोद पर हाथ रखे हैं, तभी तो वह विधायक बन रहे हैं। विनोद सरोज मौजूदा विधायक और राजा की पार्टी जनसत्ता दल के यहां उम्मीदवार हैं। पिछली बार बीजेपी को 30 हजार वोट से हराया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि राशन सहित दूसरी योजनाओं के चलते अब की बीजेपी का भी खूब जोर है, लेकिन प्रत्याशी बाहरी होने के चलते दिक्कत है। बदलाव की पुरवा में बाबा यादव की दुकान पर पान खा रहे रामविलास यादव से बातचीत के पहले नाम पूछा तो हिचकने लगे। मैंने पूछा, यहां खौफ बहुत है? मुस्कराते हुए बोले, ‘जितना बंबइया में भईया नहीं है, उससे ज्यादा भईया यहां हैं। राजा के तालाब और मगरमच्छ का किस्सा छेड़ा तो बोले, मगरमच्छ तो है, लेकिन उसके दांत नहीं हैं। फिर खुद ही बात स्पष्ट की - मगरमच्छ की कहानी गढ़ी हुई है। 2002 में राजा भईया जेल गए तो मायावती ने उनका तालाब छिनवा लिया। उसी में कभी मगरमच्छ तो कभी नर कंकाल की कहानी गढ़ दी गई। राजा भईया यहां लोगों की मदद करते हैं, बाहर बस अफवाहें हैं।’ वफादारी बनाम बदलाव की लड़ाई कुंडा में ब्राह्मण, ठाकुर के साथ ही यादव, मुस्लिम व दलितों की प्रभावी संख्या है। अभी तक राजा के आभामंडल में जातीय खांचे टूटते थे, एसपी भी साथ थी। इस बार एसपी के अलग लड़ने से लड़ाई साफ दिख रही है। स्थानीय लोग नाम बताने से परहेज करते हैं, लेकिन, उनका कहना है कि तीन दशक में पहली बार यहां विपक्ष आक्रामक प्रचार कर रहा है और राजा भी पूरा जोर लगा रहे हैं। नहीं तो पहले चुनाव नाम के लिए होता था। विकल्प तलाशने वाले लोग भी इस बार संभावनाएं देख रहे हैं। केन बिहारी के पुरवा के रहने वाले एक सज्जन कहते हैं कि दलित वोट भी इस बार राजा और गुलशन दोनों में बंट रहा है। ठाकुरों के गांव में दलित राजा के खिलाफ जा सकते हैं तो यादवों के गांव में एसपी के खिलाफ। राजा ने यहां सामूहिक विवाह सहित दूसरे आयोजनों के जरिए बहुत मदद की है। ब्राह्मण वोट भी राजा और बीजेपी के बीच बंट रहा है। राजा पिछली बार 1 लाख वोट के अंतर से जीते थे। इस बार लड़ाई करीबी दिख रही है, लेकिन धारणा के स्तर पर पलड़ा अभी भी राजा की ओर ही झुका हुआ है।


from India News: इंडिया न्यूज़, India News in Hindi, भारत समाचार, Bharat Samachar, Bharat News in Hindi, coronavirus vaccine latest news update https://ift.tt/pSVwHlb

Comments

Popular posts from this blog

चिदंबरम की मुश्किलें बढ़ीं, ED ने मांगी गिरफ्तारी

संपादकीय: उपचुनाव का संदेश, I.N.D.I.A गठबंधन बनने के बाद की पहली भिड़ंत

विशुद्ध राजनीति: विपक्षी बैठक के बाद ममता खफा, राहुल का विदेश दौरा, स्पेशल सेशन पर सस्पेंस, देश की राजनीति में सब घट रहा