अचानक पार्टी नहीं छोड़ी, कमियों के बारे में सोनिया गांधी को खत लिखकर बताता रहाः अश्विनी कुमार

करीब 46 साल कांग्रेस में रहने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री ने पिछले दिनों पार्टी को अलविदा कह दिया। अश्विनी कुमार के कांग्रेस छोड़ने के बाद से यह कहा जा रहा है कि पार्टी के अंदर जरूर कुछ न कुछ ऐसी दिक्कत है, जिसकी वजह से इस्तीफों का सिलसिला लगातार जारी है। एनबीटी नैशनल ब्यूरो की विशेष संवाददाता मंजरी चतुर्वेदी ने अश्विनी कुमार से बात कर जानना चाहा कि आखिर कांग्रेस का संकट है क्या। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश : कबसे लगने लगा था कि कांग्रेस छोड़ देना चाहिए?लंबे समय से मैं पार्टी में असहज महसूस कर रहा था लेकिन खासकर जब से पंजाब में नई लीडरशिप को उभारा गया, मुझे लगने लगा कि अब इस पार्टी में अपनी गरिमा के साथ रहना असंभव है। सोनिया गांधी के प्रति मेरे मन में बहुत सम्मान है, जिसकी वजह से मैं अब तक खुद को रोकता रहा। लेकिन हर इंसान की जिंदगी में एक मुकाम ऐसा आता है, जब स्थिति असहनीय हो जाती है। मैं कहीं ना कहीं अपनी ही नजरों में गिरने लगा था। आपने पार्टी की टॉप लीडरशिप से बात करने की कोशिश नहीं की? मैंने गाहे-बगाहे सोनिया गांधी को खत लिखा। अपने विचारों से अवगत कराता रहा कि पार्टी के भीतर लोग खुद को कितना छोटा महसूस कर रहे हैं। मैदान-ए-जंग में अगर सिपाही ही खुद को छोटा महसूस करने लगे, तो वह जंग नहीं जिता सकता। वह मेरी बात सुनती थीं, कभी ऐसा नहीं लगा कि वह सैद्धांतिक तौर पर मुझसे इत्तेफाक नहीं रखतीं। लेकिन धरातल पर लिए जाने वाले फैसले गलत होते थे। इस्तीफा देने से पहले तो एक बार बात कर सकते थे... सोनिया गांधी से नहीं तो मनमोहन सिंह से ही सही? मैं न तो उन्हें किसी धर्मसंकट में डालना चाहता था और ना ही खुद किसी धर्म संकट में पड़ना चाहता था। दोनों मेरे लिए बेहद आदरणीय और श्रद्धेय रहे हैं। राजनीतिक जीवन में मुझे आगे बढ़ाने के लिए इन दोनों ने जो भरोसा और जिम्मेदारियां मुझे दीं, उसके लिए ताउम्र इनका आभारी रहूंगा। आखिर पार्टी के अंदर ऐसी क्या दिक्कत है कि इतने पुराने-पुराने लोग पार्टी छोड़ रहे हैं? बहुत सारे लोग पार्टी के भीतर खुद को उपेक्षित और अवांछित महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि पार्टी के भीतर उनकी दशकों पुरानी प्रतिबद्धता और वफादारी का कोई सम्मान नहीं है। हर व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी दल या संस्था में हो, अपनी गैरत और सम्मान को बरकरार रखने का हक है। खासतौर पर वह व्यक्ति या नेता, जो सार्वजनिक जीवन में सक्रिय है। अगर वह अपना सम्मान और अस्मिता बरकरार नहीं रख पाता तो वह उनका सम्मान कैसे रख पाएगा, जिनकी वह नुमाइंदगी करता है? कहा तो यह जाता है कि जब तक कांग्रेस सत्ता में रही, पुराने लोगों ने सत्ता सुख लिया, अब संकट के दौर में वे ऐसी जगह तलाश रहे हैं, जहां सत्ता सुख मिल सके... ऐसा कहना गलत होगा। लोग तब भी छोड़ कर गए, जब पार्टी पावर में थी। जगन रेड्डी और हिमंता बिस्व सरमा ने कांग्रेस तब छोड़ी, जब पार्टी पावर में थी। मैं अपनी बात करूं तो मैंने पार्टी तब नहीं छोड़ी, जब मुझसे मंत्री पद से इस्तीफा लिया गया, जब मेरा राज्यसभा का टेन्योर नहीं बढ़ाया गया। मेरा मानना है कि जब तक सोनिया गांधी ने पार्टी अपने हिसाब से चलाई, तब तक पार्टी अच्छी चली। मगर अब पार्टी के फैसलों पर उनकी छाप नजर नहीं आती। कांग्रेस के अभी तक जितने भी नेताओं ने पार्टी छोड़ी है, उनमें से ज्यादातर नेताओं ने बीजेपी ही क्यों जॉइन की? जो लोग सियासत में हैं और पॉलिटिकल पार्टी को सार्वजनिक जीवन का एक जरिया मानते हैं, वे जब देखते हैं कि देश भर में बीजेपी की स्वीकार्यता बढ़ रही है तो स्वाभाविक ही सोचते हैं कि उसी पार्टी में जाएं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़े हों। अब अगला कौन पार्टी छोड़ रहा है?मैं यह तो नहीं बता सकता। हां यह जरूर कह सकता हूं कि बहुत से लोग हैं, जो असहज महसूस कर रहे हैं। मेरा उनसे यही कहना है, 'तकाजा है मौजों का तूफां से खेलो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे।' मेरा उसूल रहा है, 'फख्र से चलूंगा, भले ही एक कदम कम सही। सम्मान से जिऊंगा, भले ही एक दिन कम सही।' वैसे आप कांग्रेस का क्या भविष्य देखते हैं?कांग्रेस का भविष्य अंधकारमय है। कम से कम आने वाले दस पंद्रह सालों में तो मुझे कांग्रेस की बढ़त नजर नहीं आ रही। देश के बदलते अहसास और परिपक्व होते लोकतंत्र के हिसाब से पार्टी खुद को ढालने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। कमी क्या देखते हैं?प्रमुख कमी है नेतृत्व की। दूसरी कमी है संगठनात्मक ढांचे की। जिनको महत्व मिलना चाहिए, उन्हें महत्व मिलता नहीं। चाटुकारों को महत्व दिया जाता है। जिस तरह का नेतृत्व अब कांग्रेस में उभारा जा रहा है और जिस तरह का नेतृत्व आज कांग्रेस चला रहा है, उस नेतृत्व के चलते कांग्रेस का भविष्य अंधियारा लगता है। क्या कांग्रेस के अंदर सोनिया, राहुल, प्रियंका के अलग-अलग पाले खिंच गए हैं? यह बिल्कुल गलत सोच है। परिवार के भीतर तीनों सदस्य एकजुट हैं। वहां कोई विरोधाभास नहीं है। उनके बीच राहुल गांधी को पार्टी का नेतृत्व सौंपने का फैसला हो चुका है।


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