विशुद्ध राजनीतिः क्या पंजाब में 'हिट विकेट' हो जाएंगे सिद्धू, महाराष्ट्र छोड़ अबु आजमी यूपी क्यों पहुंचे?
Pure Politics: विशुद्ध राजनीति पॉलिटिक के इस अंक में बिहार के साथ-साथ बात होगी पंजाब की, बंगाल की और यूपी के चुनाव की। आखिर महाराष्ट्र छोड़ अबु आजमी यूपी क्यों पहुंचे हैं भाई?
जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में एक प्रस्ताव पास हुआ कि ‘प्रधानमंत्री पद को लेकर हमारी कोई दावेदारी नहीं है, तो वहीं पंजाब की पॉलिटिक्स में नवजोत सिंह सिद्धू के ‘हिट विकेट’ होने का खतरा बढ़ गया है। क्या सुष्मिता देव के कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में शामिल होने के पीछे प्रशांत किशोर हैं? महाराष्ट्र के विधायक और समाजवादी पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष अबू आसिम आजमी ने इन दिनों यूपी में डेरा क्यों डाल दिया है? विशुद्ध राजनीति के इस अंक आज बात इसी के बारे में....
काबिलियत है, दावेदारी नहीं
जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में एक प्रस्ताव पास हुआ कि ‘प्रधानमंत्री पद को लेकर हमारी कोई दावेदारी नहीं है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम ही है, लेकिन नीतीश कुमार अपने अनुभव और काम के प्रति समर्पण के लिहाज से प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण रखते हैं।’ अचानक इस तरह की सफाई देने की जरूरत क्यों पड़ गई, यह सवाल उठना स्वाभाविक है। कहा जा रहा है कि पिछले दिनों जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच जिस तरह का एका दिखा, उसके चलते यह माना जा रहा था कि दोनों पार्टियों के बीच की दूरी घटी है। आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष का बयान भी आ गया कि ‘तेजस्वी के कहने पर नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात का समय लिया था और बिहार के सभी दलों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री से मिले। अगर नीतीश कुमार राज्य में तेजस्वी यादव के नेतृत्व को स्वीकार कर लेते हैं तो महागठबंधन में उनके लिए दरवाजे खुले हुए हैं।’ इसके बाद से यह कयास शुरू हो गया कि नीतीश कुमार राज्य में तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के लिए राजी हो सकते हैं और उसके बदले विपक्ष उन्हें मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री का चेहरा बना सकता है। राज्य बीजेपी को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव का यह एका पसंद नहीं आ रहा था। नीतीश कुमार को लगा कि प्रेशर पॉलिटिक्स में अगर बीजेपी के साथ कुछ ज्यादा नाइत्तेफाकी बढ़ी तो उनका नुकसान हो सकता है। इसी के मद्देनजर जेडीयू को कहना पड़ा कि उसके पीएम नरेंद्र मोदी ही रहेंगे।
‘हिट विकेट’ न हो जाएं
पंजाब की पॉलिटिक्स में नवजोत सिंह सिद्धू के ‘हिट विकेट’ होने का खतरा बढ़ गया है। उनके अध्यक्ष बनने के बाद राज्य में पार्टी के अंदर का जो घटनाक्रम रहा, उससे पार्टी नेतृत्व सिद्धू से खुश नहीं है। अभी डेढ़ महीने पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह की आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए उन्हें जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था तो संदेश साफ था कि कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें कैप्टन के मुकाबले तरजीह दी है और भविष्य में पार्टी उन्हीं के नेतृत्व में आगे बढ़ना चाहेगी। अध्यक्ष बनने के बाद सिद्धू ‘सेल्फ गोल’ करने के मूड में आ गए। उनके सलाहकारों के बयानों से पूरी पार्टी डिफेंसिव मोड में तो आई ही, लेकिन कैप्टन के खिलाफ विधायकों-मंत्रियों वाला जो प्रकरण रहा, उसने सिद्धू की छवि को खासा नुकसान पहुंचाया। दिल्ली में यह स्थापित होता दिखा कि अध्यक्ष बनने के बाद उनकी प्राथमिकता वहां पार्टी को दोबारा सत्ता में लाने की नहीं है। वह पूरी ताकत कैप्टन के खिलाफ ही लगाए हुए हैं। यही वजह रही कि केंद्रीय नेतृत्व ने इस कथित बगावत को तवज्जो देना जरूरी नहीं समझा। केंद्रीय नेतृत्व का रुख भांप कर बागी विधायकों ने भी तेवर ढीले कर लिए। अब उन्हें कैप्टन को हटाने से ज्यादा अपना टिकट बचाने की फिक्र होने लगी है। वह केंद्रीय नेतृत्व के प्रति अपनी वफादारी दिखा रहे हैं। राज्य प्रभारी हरीश रावत का यह बयान भी आ गया है कि सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंपा गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें पूरी कांग्रेस ही सौंप दी गई है। लगे हाथ यह भी साफ कर दिया गया है कि चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। चेहरा बदलने जैसी कोई बात नहीं है। मनीष तिवारी ने भी ट्वीट किया, ‘हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।’ इसे भी सिद्धू के खिलाफ ही माना जा रहा है।
पर्दे के पीछे पीके
पिछले दिनों महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कांग्रेस छोड़ टीएमसी में शामिल होने का फैसला किया। इस तरह की खबरें भी मीडिया के जरिए आईं कि टीएमसी उन्हें त्रिपुरा में पार्टी का चेहरा बना सकती है। खैर ये बातें अब पुरानी हो चुकी हैं। ताजा बहस इस बात को लेकर है कि सुष्मिता देव के टीएमसी तक पहुंचने का रास्ता कैसे तैयार हुआ। जो बातें अब छनकर बाहर आ रही हैं, उनके मुताबिक प्रशांत किशोर ने भले ही बंगाल चुनाव के बाद चुनाव प्रबंधन के पेशे से अपने को रिटायर घोषित कर दिया हो, लेकिन पर्दे के पीछे से अभी भी वह ममता बनर्जी के लिए मददगार बने हुए हैं, खासतौर पर टीएमसी के विस्तार और उसकी राष्ट्रीय छवि बनाने के लिहाज से। कहा जा रहा है कि सुष्मिता देव की उन्हीं के जरिए टीएमसी में एंट्री हुई है। नॉर्थ ईस्ट के कई दूसरे राज्यों में कुछ अन्य प्रभावशाली नेताओं से भी इन दिनों ममता बनर्जी की बात चल रही है, उसके सूत्रधार भी प्रशांत किशोर ही बताए जा रहे हैं। असम में सीएए के खिलाफ चलने वाले आंदोलन का चेहरा रहे और जेल से रहकर चुनाव जीतने वाले अखिल गोगोई ने भी पिछले दिनों ममता बनर्जी से मुलाकात की। उनका बयान भी आया कि ‘ममता बनर्जी के नेतृत्व में क्षेत्रीय दलों का गठबंधन 2024 में केंद्र में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए है’। उसके बाद से यह चर्चा तेज हो गई है कि वह भी टीएमसी में आ सकते हैं और असम में पार्टी का चेहरा बन सकते हैं। हिंदी भाषी राज्यों के कुछ दलों और उनके नेताओं से भी प्रशांत किशोर ममता की बात करा रहे हैं।
यूपी आने की वजह
महाराष्ट्र के विधायक और समाजवादी पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष अबू आसिम आजमी ने इन दिनों यूपी में डेरा डाल दिया है। कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर रहे हैं, अलग-अलग जिलों में दौरा कर रहे हैं। वैसे तो वह रहने वाले यूपी के ही हैं, लेकिन लंबे वक्त से उन्होंने मुंबई को अपनी कर्मभूमि बना लिया है। उनकी पहचान अब यूपी में एक मुंबइया की है। यूपी की पॉलिटिक्स में उनके इतना सक्रिय होने की आखिर वजह क्या है, इसको लेकर इन दिनों काफी चर्चा है। कहा जा रहा है कि अभी तक आजम खां समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा हुआ करते थे। योगी सरकार आने के बाद से वह जेल में हैं, यूपी चुनाव होने में अब सिर्फ छह महीने का वक्त बचा है। मुसलमानों में समाजवादी पार्टी से इस बात को लेकर नाराजगी भी है कि उसने आजम की गिरफ्तारी को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। ऐसे में समाजवादी नेतृत्व को एक ऐसे मुस्लिम चेहरे की तलाश हुई जो राज्य में आजम की कमी को पूरा कर सके, साथ ही मुसलमानों के बीच जो नाराजगी पैदा हुई है, उसे खत्म करने में मददगार साबित हो। ऐसे में अबू आसिम को महाराष्ट्र से बुलाकर यूपी में चुनाव तक ‘डेरा’ डालने को कहा गया है। अब देखने वाली बात यह है कि क्या अबू आसिम यूपी में आजम का स्थान ले सकेंगे? राज्य में समाजवादी पार्टी के लिए इस बार मुस्लिम वोटों को लेकर चुनौती इसलिए भी बढ़ी हुई है कि ओवैसी की पार्टी वहां चुनाव लड़ने जा रही है। उसने कम से कम सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रखी है। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ वह गठबंधन करने का भी इरादा रखती है। उधर, समाजवादी पार्टी की यूपी इकाई के मुस्लिम नेता इस बात को लेकर सवाल करते दिख रहे हैं कि आखिर उन पर भरोसा क्यों नहीं किया गया।
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