कोरोना वैक्सीन पर द लैंसेट की रिपोर्ट ने बढ़ाई टेंशन, आखिर कब पड़ेगी बूस्टर डोज की जरूरत
नई दिल्ली कोरोना के नए वेरिएंट पर वैक्सीन कितनी असरदार है साथ ही वैक्सीन से एंटीबॉडी कब तक मौजूद रहेगी इसको लेकर समय-समय पर सवाल खड़े होते रहे हैं। वैक्सीन पर द लैंसेट की एक रिपोर्ट पब्लिश हुई है जिसमें कहा गया है कि फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की डोज के बाद एंटीबॉडी छह सप्ताह बाद से कम होना शुरू होने लगती हैं और 10 सप्ताह में 50 प्रतिशत से भी अधिक कम हो सकती हैं। इस रिपोर्ट के आने के बाद चर्चा यह शुरू हो गई है कि क्या कोरोना के खिलाफ वैक्सीन की दो डोज भी काफी नहीं है। क्या बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी और ऐसा है तो कितने दिनों बाद। द लैंसेट की रिपोर्ट के बाद वैक्सीन से जुड़े सवालों पर एक्सपर्ट्स की अलग - अलग राय है। ICMR महामारी विज्ञान विभाग के संस्थापक- निदेशक डॉक्टर मोहन गुप्ते ने टाइम्स नाउ के साथ बात करते हुए कहा कि एंटीबॉडी और नए वेरिएंट पर नजर रखनी होगी। उन्होंने कहा कि बूस्टर की आवश्यकता 6 महीने या 1 साल पहले नहीं होगी। आईसीएमआर में पूर्व वैज्ञानिक और एम्स के पूर्व डीन डॉ. एनके मेहरा ने कहा कि हर टीके के बाद इम्यून मेमोरी सक्रिय रहती है। रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करते हैं कि टीके की दो खुराक लेने को बाद इससे लंबे समय तक रक्षा मिलेगी। लेखक, डॉक्टर आनंद रंगनाथन टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी का गायब होना चिंताजनक है लेकिन यह पूरी तरह से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की लड़ने की क्षमता को नहीं दर्शाता है। बूस्टर डोज की जरूरत किसको पहले एक्सपर्ट का सुझाव है कि वयस्क जो क्लीनिकल तौर पर काफी कमजोर हैं, जिनकी आयु 70 वर्ष या उससे अधिक है, ऐसे घर जहां वृद्ध लोगों की देखभाल हो रही है, उन सभी को बूस्टर डोज दी जानी चाहिए। बूस्टर वह खुराक है जो किसी विशेष रोगजनक के खिलाफ व्यक्ति की इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए दी जाती है। बूस्टर डोज शरीर के अंदर तुरंत इम्यून सिस्टम को एक्टिव कर देती है। यह इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी के आधार पर काम करती है। हालांकि, अभी तक WHO ने बूस्टर डोज को स्वीकृति नहीं दी है।
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