पॉलिटिक्स का चैप्टर क्लोज, अब ईश्वर में मन रम गया....ऐसा क्यों कह रहे गुप्तेश्वर पांडेय

पटना बिहार के पूर्व डीजीपी का सियासत से इस कदर मोहभंग हुआ कि अब वो गेरुए कपड़े में कथावाचक की भूमिका में आ गए हैं। अपनी नई भूमिका को लेकर गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि मैंने अपने आपको भगवान को समर्पित कर दिया है। एक निजी न्यूज चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा कि देश काल परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति की प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं। मैं कथावाचक प्रोफेशनल अर्थ में नहीं हूं। हालांकि, अब कथा कह रहा हूं तो कथावाचक कह सकते हैं। वैसे मुझे आम आदमी के रूप में ही जानिए। नई भूमिका पर बोले गुप्तेश्वर पांडेय- मेरा यहां बहुत मन लग रहाकभी राजनीति में आने को लेकर गुप्तेश्वर पांडेय ने दो बार सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) ली, लेकिन दोनों बार उन्हें मायूसी ही हाथ लगी। शायद इसीलिए उन्होंने मान लिया है कि राजनीति उनके लिए मुफीद नहीं। इसलिए उन्होंने नया रास्ता चुन लिया। एक निजी न्यूज चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा कि नई भूमिका में मेरा बहुत मन लग रहा है। आत्मा की खुराक तो यहीं है। मैंने अपने आपको भगवान को समर्पित कर दिया है। ठाकुर जी की इच्छा से ही सबकुछ करूंगा। मेरी अपनी कोई इच्छा नहीं है। 'मेरी राजनीति करने की तनिक भी इच्छा नहीं है'गुप्तेश्वर पांडेय ने आगे कहा कि कुछ भी स्थायी नहीं है। जो जितने ऊंचे पद पर है वो उतना ही दुखी है। आनंद तो केवल ईश्वर के रास्ते पर है, उन्हें ही प्राप्ति की कोशिश कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि अभी मेरी राजनीति करने की तनिक भी इच्छा नहीं है। भगवान के चरणों में अनुराग पैदा हो जाए, अभी मेरी यही इच्छा है। मैंने खुद को भगवान को समर्पित कर दिया है। मैं साफ कह दूं कि हमारी अभी राजनीति करने की कोई भी इच्छा नहीं है। राजनीति से मोहभंग पर क्या बोले गुप्तेश्वर पांडेयगुप्तेश्वर पांडेय ने न्यूज चैनल के साथ इंटरव्यू में आगे बताया कि मैंने खुलकर कहा है कि मैंने वीआरएस इसलिए क्योंकि राजनीति ज्वाइन करना चाहता था। चुनाव लड़ना चाहता था लेकिन टिकट नहीं मिला। टिकट नहीं मिलने के लिए भी बहुत सारे कारण होते हैं। उसे मैं अपना प्रारब्ध मानता हूं, उसमें किसी का दोष नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि मुझे टिकट नहीं मिला तो राजनीति में प्रवेश ही नहीं हुआ ना, तो ऐसे में वो चैप्टर बंद हो गया। इच्छा थी लेकिन अब वो इच्छा खत्म हो गई। 'परिवर्तन भीतर से होना चाहिए, बाहर से परिवर्तन में क्या फायदा'गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि 15 से 22 तक मैंने अयोध्या में कथावाचन किया लेकिन ना मैं संन्यासी बना हूं। ना ही मैंने गेरुआ वस्त्र धारण किया है। धोती कुर्ता पहनता हूं उसमें लाल कुर्ता, सफेद कुर्ता, गेरूआ कुर्ता सभी रहते हैं। उन्होंने कहा कि परिवर्तन भीतर से होना चाहिए, बाहर से परिवर्तन में क्या फायदा। मेरे मन में किसी के प्रति कोई गिला नहीं कोई शिकवा-शिकायत नहीं। मेरी सभी के लिए कल्याण की कामना है।


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