केंद्र को सुप्रीम कोर्ट की खरी-खरी, जब संविधान कहता है... तो वैक्सीन खरीद राज्यों पर क्यों

नई दिल्‍ली सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन नीति पर सुनवाई के दौरान कहा कि केंद्र सरकार को वास्तविक स्थिति समझनी होगी। आप कॉफी सूंघिये। आपको देखना होगा कि देश में क्या हो रहा है। आपको ग्राउंट रियलिटी पर ध्यान देना होगा। उसी के मुताबिक अपनी नीति में बदलाव करना चाहिए। भारत में दूर की चीज है। वहीं, सरकार ने कहा कि इस साल के आखिर तक देश में वैक्सीनेशन पूरा हो जाएगा। केंद्र की वैक्सीन पॉलिसी पर सुप्रीम सवाल....केंद्र की वैक्सीन नीति क्या है? मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा उसकी वैक्सीन नीति क्या है। दरअसल, तमाम राज्यों की ओर से कोरोना से संबंधित वैक्सीन की खरीद के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किया जा रहा है। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उसकी दोहरी वैक्सीन नीति के बारे में सवाल किया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश से कहा कि कोरोना वैक्सीन की खरीद के लिए कई राज्यों द्वारा ग्लोबल टेंडर जारी किया जा रहा है। क्या ये सब केंद्र सरकार की पॉलिसी का हिस्सा है। तब सुप्रीम कोर्ट से केंद्र ने कहा कि इस साल के आखिर तक जो भी जरूरत वाले लोग हैं उनका टीकाकरण कर दिया जाएगा। फाइजर जैसी कंपनियों से केंद्र की बातचीत चल रही है। अगर वह सफल हुई तो साल के अंत तक टीकाकरण की समयसीमा भी बदल सकती है। भारत यूनियन ऑफ स्टेट है तो क्या आप अपने को वन नेशन नीति पर रख रहे हैं? जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि क्या देश की 50 फीसदी 18 से लेकर 45 की आयु के लोग वैक्सीन खरीद में सक्षम हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-1 कहता है कि भारत यूनियन ऑफ स्टेट है। जब संविधान ऐसा कहता है तो सरकार को वैक्सीन खरीद और वितरण करना चाहिए। राज्यों पर इसकी जिम्मेदारी नहीं छोड़नी चाहिए। केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि भारत की वैक्सीन पॉलिसी क्या है। क्या आप अपने को वन नेशन नीति पर रख रहे हैं और राज्यों के लिए वैक्सीन खरीद रहे हैं या फिर राज्यों पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। केंद्र सरकार ने कहा कि अगर बल्क में खरीदा गया तो कीमत कम हो सकती है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप जो कह रहे हैं अगर वह सही है तो फिर राज्य क्यों ऊंची कीमत दे रहे हैं। इस बात की जरूरत है कि देशभर में वैक्सीन की कीमत एक समान हो। पिछले दो महीने में महामारी काफी बढ़ गई है। लोगों को स्मार्ट फोन के अभाव में नहीं मिल रहा है वैक्सीनेशन का स्लॉट सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीनेशन मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि ये चिंता का विषय है कि लोगों को वैक्सीनेशन के लिए स्लॉट नहीं मिल पा रहा है। कोविन एप पर वैक्सीनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है ताकि वैक्सीन का स्लॉट मिले। लेकिन देश में बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है और न ही इंटरनेट है, ऐसे में वे वैक्सीन का स्लॉट पाने से वंचित हो रहे हैं। आप लगातार डिजिटल इंडिया और डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं। लेकिन, आपको ग्राउंड रियलिटी पता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा है कि देश में डिजिटल डिविजन है। अदालत ने कहा कि आपके पास रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया है। लेकिन, आप कैसे डिजिटल डिविजन का जवाब देंगे। आप उन प्रवासी मजदूरों के बारे में क्या जवाब देंगे जो एक राज्य से दूसरे राज्य जा रहे हैं। दरअसल, केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि रजिस्ट्रेशन की दरकार है ताकि देश भर में लगने वाले डोज पर ट्रैक रखा जा सके। किस तरह की वैक्सीन किसे दी गई ये देखना जरूरी है। केंद्र ने कहा कि जिनके पास डिजिटल पहुंच नहीं है उनके लिए गांव के कॉमन सेंटर और दोस्त या फिर एनजीओ की मदद है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों के मन में डर है कि उनको स्लॉट नहीं मिल रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे पास ऐसे कॉल भी आए हैं। भारत में डिजिटल लिट्रेसी दूर की चीज... सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या सभी को कोविन में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। क्या ये वास्तविक तौर पर संभव है? क्या ये देहाती इलाके में संभव है। आप कैसे गांव में रहने वाले गरीबों से ये उम्मीद करेंगे? हमारे अपने लॉ क्लर्क और दोस्त कोशिश कर चुके हैं। अगर लोगों को दिक्कत है तो हम उम्मीद करते हैं कि आप उसे देखें। भारत में डिजिटल लिट्रेसी बहुत दूर की चीज है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मैं ई कमिटी का चेयरमैन हूं और हमने देखा है कि क्या दिक्कतें हैं। केंद्र सरकार से कोर्ट ने कहा कि आपको लचीला रवैया अपनाना होगा और धरातल पर कान रखने होंगे। क्या गांव में कॉमन सेंटर पर रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था भी प्रैक्टिकल है। अदालत ने सवाल किया कि देहाती इलाके में डिजिटल डिविजन है। देहाती इलाके में आपने कहा है कि गांव के लोग कोविन एप पर एनजीओ के जरिये रजिस्टर्ड हों। हम जानना चाहते हैं कि कैसे ये काम करता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप (केंद्र सरकार) कृपया कॉफी सूंघें। अगर करना होता तो हम 15 दिन पहले कर चुके होते। हम चाहते हैं कि आप कॉपी सूंघें और इस बात को महसूस करें कि देश में क्या हो रहा है और जरूरी बदलाव करें। आप जगिए और कॉफी सूंघिये और देखें कि देश में क्या हो रहा है: SC वैक्सीन नीति पर सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ये पॉलिसी मैटर है और कोर्ट को जूडिशियल रिव्यू का सीमित अधिकार है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। हमारा वैक्सीनेशन मामले में 30 अप्रैल का आदेश है और आप केवल ये नहीं कह सकते कि आप केंद्र सरकार हैं और आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है। इन बातों के लिए हमारे पास मजबूत हाथ हैं। आप रवैया लचीला रखिये। हम पॉलिसी नहीं बना रहे हैं। हम कह रहे हैं कि आप जगिये और कॉफी सूंघें और देखें कि देश में क्या हो रहा है। हम सिर्फ दोहरी कीमत वाली वैक्सीन पॉलिसी को देख रहे हैं। आप कह रहे हैं राज्यों से कि वैक्सीन लें और कंपिटिशन में आ जाएं। तब सॉलिसिटर जनरल ने ये भी कहा कि ये गलत कहना है कि राज्यों में टीका प्राप्त करने के लिए एक दूसरे के प्रति कंपिटिशन है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ही हो चुका है टास्क फोर्स का गठन 8 मई को कोरोना महामारी के दौरान देश भर में ऑक्सि‍जन सप्लाई और आवंटन को स्ट्रीमलाइन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टास्क फोर्स का गठन किया था। नेशनल टास्क फोर्स ऑक्सि‍जन आवंटन से लेकर जरूरी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अपनी सिफारिश देगी। सुप्रीम कोर्ट ने 12 सदस्यों के नेशनल टास्क फोर्स का गठन किया गया। इनके सदस्यों में हेल्थ और मेडिकल फील्ड से जुड़े दिग्गज शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक टास्क फोर्स की सिफारिश नहीं होती है तब तक सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के आदेश के मुताबिक ऑक्सि‍जन आवंटन किया जाता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टास्क फोर्स से तुरंत काम शुरू करने को कहा है और हफ्ते भर में सिफारिश करने को कहा है। साथ ही वैक्सीन पॉलिसी के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था।


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