तमिलनाडु में कांग्रेस-डीएमके बीच सीट शेयरिंग अब तक फाइनल नहीं, यहां फंस रहा पेच
नई दिल्ली शुक्रवार को चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के चुनावों के तारीख का ऐलान कर दिया हो, लेकिन अभी तक तमिलनाडु में व के बीच सीटों के बंटवारे व तालमेल को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस वहां जितनी सीटें चाह रही है, डीएमके उतनी देने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि दोनों पार्टियों के बीच शीर्ष नेतृत्व स्तर पर बात हुई है, लेकिन प्रदेश स्तर पर अभी चीजें साफ नहीं है। बताया जाता है कि दिल्ली ने डीएमके नेता स्टालिन से आपसी तालमेल को लेकर बात की थी, जिसपर दोनों पक्षों में आपसी सहमति भी बनी है। पिछले दिनों राहुल गांधी केरल के दौरे पर थे। उस दौरान उन्होंने केरल के पूर्व सीएम व सीनियर नेता ओमन चांडी व कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला को डीएमके नेतृत्व से बात करने के लिए चेन्नै भेजा था। कहा जाता है कि इस मुलाकात में भी सीटों के समझौतों को लेकर कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस वहां शुरू में अपने लिए 60-70 सीटें चाह रही थी। बाद में उसने एक फॉर्मूले के तहत अपने लिए 40-48 सीटें मांगी। दरअसल, कांग्रेस की राज्य में आठ संसदीय सीटें हैं। इस आधार पर वह हर संसदीय सीट के हिसाब से 5-6 सीेटें मांग रही है, जो 40-48 बनती हैं। जबकि डीएमके उसे 20-22 सीटें देना चाह रही है। जो कांग्रेस को मंजूर नहीं है। उल्लेखनीय है कि 234 असेंबली के लिए पिछली बार डीएमके 178 सीटों पर लड़ी थी, जबकि कांग्रेस 41 सीटों उतरी थी, जिसमें से उसे आठ सीटें मिली थीं। चर्चा है कि डीएमके व एआईडीएमके दोनों ही दल इस चुनाव में अपने सहयोगी दलों को कम सीटें देकर खुद ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहते हैं, ताकि मौका आने पर अपने दम पर सरकार बना सकें। दोनों ही प्रमुख क्षेत्रीय दल वहां गठबंधन की सरकार बनाने से बचना चाहते हैं। बताया जाता है कि वहां डीएमके अपने लिए 180 सीटें रखना चाहती है। ऐसे में अगर वह कांग्रेस की मांग मानती है तो फिर लेफ्ट व छोटे मुस्लिम दलों के लिए सीटें बच पाना मुश्किल होगा। वहां लेफ्ट अपने लिए 20 सीटें चाह रही है, जबकि तीन छोटे दल 2-2 सीटें चाह रहे हैं। सूत्राें के मुताबिक, सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस-डीएमके के बीच प्रदेश स्तर पर बात नहीं शुरू हो पाई है। डीएमके नंबर बताने की बजाय लगातार कह रही है कि इतनी सीटें नहीं दे सकती। दूसरी ओर कांग्रेस की मुश्किल है कि अगर वह डीएमके की मांग मानती है तो इस सीट शेयरिंग का असर दूसरे चार राज्यों में भी सीटों के समझौते पर पड़ेगा। कांग्रेस के एक प्रदेश स्तर के नेता का कहना था कि पार्टी को लगता है कि दस फीसदी से कम सीटों पर मानने से बेहतर है कि चुनाव में अकेले ही जाया जाए। इसका असर दूसरे राज्यों में होगा। कांग्रेस की बारगेनिंग कमजोर होगी। हालांकि इसके अलावा भी कांग्रेस के पास ज्यादा सीट चाहने के पीछे अपने कारण भी हैं। पहला, पिछली बार वह 41 सीटों पर लड़ी थी, तो इस बार कम क्यों। दूसरा, कांग्रेस को 2019 के आम चुनावों में आठ संसदीय सीटें मिली थीं। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि 2016 की अपेक्षा उसकी वोट फीसदी बढ़ा है। इसके अलावा, वहां एआईडीएमके के खिलाफ दस साल की एंटी इंकंबेंसी भी है, जिसे कांग्रेस-डीएमके दोनों ही इस बार अपने लिए बेहतर संभावना के तौर पर देख रहे हैं।
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