राजीव गांधी के उस फैसले की कहानी, जिसके बाद नरसिम्हा राव छोड़ना चाहते थे राजनीति

1990 के उस दौर में राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के बीच सब ठीक नहीं था। राजीव गांधी ने यह फैसला किया था कि कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता होने के बावजूद पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस पार्टी का राज्यसभा सांसद ना बनाया जाए। इस बात ने राव को ठेस पहुंचाई और राव ने दिल्ली छोड़कर हैदराबाद शिफ्ट होने का फैसला कर लिया। राजनीतिक संन्यास लेने के उस फैसले की कहानी क्या थी, इस बात का जिक्र पूर्व विदेश मंत्री और एक जमाने में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नटवर सिंह ने अपनी किताब 'वन लाइफ इज नॉट एनफ' में किया है। पढ़ें कि आखिर कैसे राव एक सबसे बड़े फैसले तक पहुंच गए थे...

देश में सत्ता के शिखर पर रही कांग्रेस पार्टी के उस दौर में नरसिम्हा राव पार्टी के सबसे सीनियर नेता थे। तमाम लोगों के किंगमेकर रहने की हैसियत रखने वाले राव को जब राजीव गांधी ने राज्यसभा का टिकट ना देने का फैसला किया तो इस एक फैसले ने देश की राजनीति में एक नई चर्चा शुरू कर दी।


पूर्व पीएम राजीव गांधी के उस फैसले की कहानी, जिसके बाद PV Narsimha Rao छोड़ना चाहते थे राजनीति

1990 के उस दौर में राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के बीच सब ठीक नहीं था। राजीव गांधी ने यह फैसला किया था कि कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता होने के बावजूद पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस पार्टी का राज्यसभा सांसद ना बनाया जाए। इस बात ने राव को ठेस पहुंचाई और राव ने दिल्ली छोड़कर हैदराबाद शिफ्ट होने का फैसला कर लिया। राजनीतिक संन्यास लेने के उस फैसले की कहानी क्या थी, इस बात का जिक्र पूर्व विदेश मंत्री और एक जमाने में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नटवर सिंह ने अपनी किताब 'वन लाइफ इज नॉट एनफ' में किया है।

पढ़ें कि आखिर कैसे राव एक सबसे बड़े फैसले तक पहुंच गए थे...



...तब कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता थे राव
...तब कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता थे राव

अपनी किताब में नटवर सिंह ने लिखा है कि पीवी नरसिम्हा राव एक जमीन से जुड़े परिवार से आते थे। उनकी बौद्धिकता बेमिसाल थी। संस्कृत और संस्कृति का उनका ज्ञान कमाल का था। वह एक विचारक थे जो लगातार सीखने में विश्वास रखते थे। व्यक्तिगत तौर पर जिंदगी का हर रंग उनके साथ शामिल था। वे मस्तमौला भी थे। उनका चुटीला व्यंग्य बहुत मारक होता था। 1990 में उन्होंने राजनीति से तब संन्यास लेने का मन बना लिया जब राजीव गांधी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट देने से इनकार कर दिया था। इस बात ने उन्हें बहुत ठेस पहुंचाई थी। वे कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता थे और टिकट नहीं दिए जाने से उनका नाराज होना स्वाभाविक था। लेकिन एक सुलझे इंसान की तरह उन्होंने इसका बड़ा मुद्दा नहीं बनाया और हैदराबाद शिफ्ट करने का फैसला लिया।



नटवर सिंह ने किताब में बताया किस्सा
नटवर सिंह ने किताब में बताया किस्सा

पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में लिखा, 'मैं नरसिंह राव से पहली बार 1976 में मिला था। मौका था दिल्ली के पंचशील स्थित उनके निवास पर आयोजित हवन कार्यक्रम का। इसका आयोजन उनके गुरु चंद्रास्वामी ने किया था। 1980 के मई में उन्हें विदेश मंत्री बना दिया गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का यह चयन तब हैरान करने वाला था। उन्हें तब तक डिप्लोमैसी और विदेश नीति के किसी पहलू के बारे में खास ज्ञान नहीं था। उन्होंने बतौर विदेश मंत्री शुरुआत के कुछ दिनों में खुद को लो प्रोफाइल रखा। कोई बड़ी पहल नहीं की। तब वह फैसले लेने में देरी करते थे, हिचकते थे। वह कई मौकों पर सुस्त भी थे। वह बहुत तन्हा महसूस करते थे। लेकिन मैंने देखा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उनमें बड़ा बदलाव आ गया। वह बिल्कुल बदले हुए इंसान दिखने लगे।'



वित्तमंत्री के चयन को लेकर थी चुनौती
वित्तमंत्री के चयन को लेकर थी चुनौती

जब नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो उनके सामने सबसे पहली चुनौती देश को आर्थिक संकट से निकालने की थी। तब ऐसी हालत थी कि संकट से बचने के लिए सोने तक को गिरवी रखना पड़ा था। राव के सामने यक्ष प्रश्न यह था कि बतौर वित्त मंत्री वह किसका चयन करें। तब माना जा रहा था कि यह पद कांटों का ताज होगा। उस समय इस पद के लिए पहली पसंद आईजी पटेल बताए जा रहे थे जो प्रख्यात अर्थशास्त्री थे। लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण यह पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया। साथ ही वह गुजरात से दिल्ली शिफ्ट होने के भी इच्छुक नहीं थे।



'जब मैं नरेंद्र मोदी से मिला'
'जब मैं नरेंद्र मोदी से मिला'

4 फरवरी 2014 को मैं नरेंद्र मोदी से मिला जो उस समय बीजेपी के पीएम उम्मीदवार थे। यह मुलाकात अहमदाबाद में उनके निवास स्थान पर हुई थी। मेरा बेटा जगत भी उस मुलाकात में साथ था जो तब राजस्थान से बीजेपी विधायक था। मुलाकात के शुरू में ही मैंने उन्हें साफ कर दिया कि कोई पद के लोभ से मिलने नहीं आया हूं। मेरे मन में यह इच्छा थी कि उनसे कूटनीतिक और विदेश नीति के बारे में बात करूं और उनके सामने अपने विचार रखूं। 4 फरवरी 2014 को मैं नरेंद्र मोदी से मिला जो उस समय बीजेपी के पीएम उम्मीदवार थे। यह मुलाकात अहमदाबाद में उनके निवास स्थान पर हुई थी। मेरा बेटा जगत भी उस मुलाकात में साथ था जो तब राजस्थान से बीजेपी विधायक था। मुलाकात के शुरू में ही मैंने उन्हें साफ कर दिया कि कोई पद के लोभ से मिलने नहीं आया हूं। मेरे मन में यह इच्छा थी कि उनसे कूटनीतिक और विदेश नीति के बारे में बात करूं और उनके सामने अपने विचार रखूं। मैं कूटनीति में अपने साठ साल के अनुभवों का लाभ देना चाहता था। मैंने उन्हें कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद विदेश मंत्री भी एक तरह से वह खुद होंगे। लेकिन पिछले कुछ महीनों से लगातार मैंने एक चीज गौर की थी कि उन्होंने अपने चुनावी प्रचार के दौरान विदेश नीति का जिक्र एक बार भी नहीं किया था। उन्होंने मुझसे मेरे विचार पूछे।



मनमोहन सिंह को बनाया वित्तमंत्री
मनमोहन सिंह को बनाया वित्तमंत्री

इसके बाद नरसिंह राव ने मनमोहन सिंह को बुलाया। तब वह साउथ कमिशन के जनरल सेक्रेटरी के रूप में पदस्थापित थे। शुरू में मनमोहन सिंह को भी इस पद के लिए हिचक थी लेकिन बाद में वह मान गए। उन्हें पहली सफलता तब मिली जब आईएमएफ ने उनके आर्थिक सुधार पर भरोसा जताते हुए लगभग डेढ़ अरब डॉलर का लोन देने का फैसला किया। कांग्रेस के कई सीनियर नेता इस बात से नाराज थे कि सालों से चल रही सोशलिस्ट आर्थिक नीतियों को दरकिनार कर नरसिंह राव उदारीकरण नीति की ओर बढ़ रहे हैं। उन्हें लगा कि इससे नेहरू की स्थापित परंपरा समाप्त हो सकती है। वे खुले बाजार की परिकल्पना से आशंकित थे। इस कारण सुधार के कुछ महीने बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहे, लेकिन अगले 6 महीने में मनमोहन सिंह ने अपनी नीतियों से खुद को सही साबित कर दिया।



मोदी को नटवर ने दी थी कांग्रेस से सबक लेने की सलाह
मोदी को नटवर ने दी थी कांग्रेस से सबक लेने की सलाह

इस मुलाकात के बारे में नटवर सिंह ने आगे लिखा, 'मैंने उन्हें कहा कि भारत ने दक्षेस देशों के मित्रों को पिछले कुछ सालों से नजरअंदाज किया है। जहां तक मुझे याद था, मनमोहन सिंह पाकिस्तान, नेपाल, भूटान या श्रीलंका नहीं गए थे। मैंने उन्हें कहा कि अगर हम अपने सबसे नजदीकी पड़ोसी मुल्कों के प्रति संवेदनशील और अभिभावक की भूमिका नहीं निभा पाएंगे तो विश्व के दूसरे देशों के बीच हम किस तरह अपना नेतृत्व दिखाएंगे। मैंने उन्हें कहा कि अहमदाबाद से इस बारे में कोई दूसरा दृष्टिकोण दिख सकता है, दिल्ली से अलग। इसी तरह कोलकोता, मुंबई और चेन्नै से अलग दिखेगा। मैंने उन्हें कहा कि पिछले 67 सालों से देश की विदेश नीति स्थिर रही है। मैंने उन्हें बताया कि यूएन में 54 मुस्लिम देश हैं। ऐसे में मुस्लिम देशों को नजरअंदाज कर हम आगे नहीं बढ़ सकते और न ही ऐसा करना चाहिए। मैंने उन्हें यह भी बताया कि जवाहरलाल नेहरू ने विदेश नीति के मोर्चे पर तीन गंभीर गलतियां की थीं और अब उसका विकल्प तलाशाना होगा।'



PM मोदी ने मानी SAARC देशों को तरजीह की सलाह
PM मोदी ने मानी SAARC देशों को तरजीह की सलाह

नटवर सिंह ने किताब में लिखा, 'मुझे तब बहुत खुशी हुई जब मैंने देखा कि नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश नीति की शुरुआत दक्षेस देशों के साथ करीबी बढ़ाने की कोशिशों से की। उन्होंने इन देशों के प्रमुखों को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया था। संभव है दूसरों ने भी ऐसा सुझाव दिया हो लेकिन मुझे खुशी हुई कि उनके फैसले को विश्व समुदाय ने सराहा।'

(नटवर सिंह की पुस्तक ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’, प्रकाशक रूपा पब्लिकेशन से साभार)





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