2 मुद्दों पर सहमति...असल 2 पर पेच, जानें किसानों से समाधान का दावा कर रही सरकार कहां फंसी?

नई दिल्ली दिल्ली में भीषण ठंड के बीच जारी किसानों के आंदोलन के बीच सरकार और आंदोलनकारियों के बीच असमंजस की स्थिति थोड़ी कम हुई है। सरकार ने भले ही कुछ मुद्दों पर बनी सहमति को भले ही अपनी आधी सफलता होने का दावा किया है, लेकिन असल में आंदोलन की मुख्य मांगों को लेकर बना गतिरोध अब भी कायम है। आइए समझते हैं कि किसानों की किस मांग पर सहमति बन गई है और ऐसे कौन से मुद्दे हैं, जिनपर आगे गतिरोध समाप्त करना सरकार के लिए एक बेहद मुश्किल की बात है। ऐसे हुई बातकिसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच दिल्ली के विज्ञान भवन में 30 दिसंबर को 6वें दौर पर बातचीत हुई। इस बैठक में सरकार के प्रतिनिधि के रूप में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सोम प्रकाश और पीयूष गोयल शामिल हुए। बैठक में 40 से अधिक किसान संगठनों ने भी हिस्सा लिया। खास बात ये कि इस बैठक में नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने किसानों के साथ सकारात्मक माहौल में बात होने का दावा करते हुए, उनका लाया खाने की तस्वीर भी पोस्ट की। कहां बनी सहमति किसानों से पांच दौर की बातचीत के बाद सोमवार को कृषि सचिव की ओर से उन्हें 30 दिसंबर को 6वें दौर की बातचीत के लिए बुलाया गया था। इसके बाद मंगलवार को केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल सरकार की ओर से रणनीति के निर्धारण के लिए गृहमंत्री अमित शाह से मिले। पूरे होमवर्क के बाद सभी नेता बुधवार को विज्ञान भवन में बैठे। इस बैठक में किसानों से बिजली संशोधन विधेयक 2020 और पराली जलाने से संबंधित कानूनों पर सहमति बन सकी। जिन मुद्दों पर कुछ बात बनी उसमें मुख्य बात ये थी कि सरकार बिजली की कीमत और पराली जलाने को लेकर जुर्माने की कार्रवाई के मुद्दों पर किसानों की शंका दूर करेगी। हालांकि विरोध की प्रमुख वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कोई ठोस फैसला नहीं हो सका। बैठक के बाद सरकार ने क्या कहा किसानों से बैठक के बाद सरकार के मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, 'विज्ञान भवन में में शामिल नेताओं के साथ बैठक हुई। बैठक में किसान यूनियन के नेताओं ने जो 4 विषय चर्चा के लिए रखे थे, उनमें से 2 विषयों पर आपसी सहमति सरकार और किसान संगठनों के बीच हो गई है।' 4 जनवरी को फिर बात तोमर ने कहा, 'पर्यावरण से संबधित अध्यादेश है उसमें पराली और किसान सम्मिलित हैं। उनकी शंका थी कि किसान को इसमें नहीं होना चाहिए। इसपर दोनों पक्षों के बीच बातचीत पूरी हुई है। इसके अलावा प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट को लेकर भी किसानों की कुछ शंका थी। किसानों को लगता था कि इससे उन्हें नुकसान होगा। ऐसे में इसपर भी बीच का रास्ता निकाला गया है। अभी MSP पर सहमति नहीं बनी है, लेकिन 4 जनवरी को दोपहर 2 बजे जब हम साथ बैठेंगे तो इसपर भी चर्चा की जाएगी।' किसानों का पक्ष बैठक के बाद अपना पक्ष रखते हुए ऑल इंडिया किसान सभा पंजाब के चीफ बलकरण सिंह बराड़ ने कहा, 'सरकार ने बिजली के प्रस्तावित बिल को वापिस ले लिया है। पराली के मामले में सरकार ने अध्यादेश जारी किया था, उसे भी वापिस ले लिया है। MSP और कृषि क़ानूनों पर 4 तारीख को बात होगी।' वहीं भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा, 'हम कुछ तो संतुष्ट है। दो मांगों को मान लिया गया है। अगली बैठक में हम MSP और 3 क़ानूनों को लेकर सरकार से बात करेंगे। कल की ट्रैक्टर रैली को हमने स्थगित कर दिया है, लेकिन आंदोलन जारी रहेगा।' MSP पर कहां है समस्या? किसानों से बातचीत के बाद अब दिल्ली में सरकार के बीच एक बड़ा संकट कृषि कानूनों और एमएसपी को लेकर है। किसान कानूनों की वापसी पर अड़े हैं और एमएसपी की गारंटी भी चाहते हैं। इन दोनों में से कृषि कानून पर सरकार ने यह साफ कह दिया है कि ये बिल वापस नहीं होंगे। हालांकि सरकार संशोधन को राजी तो है, लेकिन किसान इसके लिए तैयार नहीं। दूसरी समस्या एमएसपी की है। खजाने पर बोझ से आम राय तक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी की जिस व्यवस्था को किसान लिखित गारंटी के रूप में मांग रहे, वो सरकार के लिए एक चुनौती जैसा है। कारण ये है कि MSP की इस व्यवस्था में कई पक्ष जुड़े हैं। इसमें सबसे बड़ा खर्च उस आर्थिक बोझ का है, जो किसानों को गारंटी देने के बाद खजाने पर पड़ेगा। इसके अलावा सभी पक्षों के बीच MSP पर आम सहमति बना लेना सरकार के लिए किसी सागर पर पुल बांधने जैसा मुश्किल दिखता है।


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