दलित अच्छे कपड़े पहनने लगे हैं, झुककर सलाम नहीं करते, सो बढ़ रहा है उत्पीड़न: आठवले

नई दिल्ली कोटा के अंदर कोटा को लेकर एक बार फिर बहस शुरू हुई है। केंद्रीय मंत्री और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के चीफ रामदास आठवले का मानना है कि उन्हें इस पर कोई एतराज नहीं, लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं। वे यह भी मानते हैं कि दलित उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के लिए किसी सरकार को दोष देना उचित नहीं, बल्कि इसके लिए समाज का नजरिया दोषी है। दलितों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर आठवले से बात की एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश : सवाल- आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्ग की सभी जातियों तक सामान्य रूप से पहुंचाने के लिए कोटे के अंदर कोटे की बात हो रही है। इस कॉन्सेप्ट से आप कहां तक सहमत हैं? उत्तर- मुझे कोई ऐतराज नहीं, लेकिन यह बात कहने में ही आसान है, उसे लागू कराना बहुत मुश्किल भरा काम है। व्यावहारिक दिक्कतें हैं। किसी भी आरक्षित वर्ग में आने वाली जातियों की आबादी, उनकी साक्षरता दर अलग-अलग है। मेरा मत है कि किसी भी आरक्षित वर्ग की जो जातियां पढ़ाई में पीछे हैं, उनको पढ़ने में मजबूत कीजिए, नौकरी में वे खुद बराबरी कर लेंगी। सवाल-अलग-अलग मौकों पर देश की आरक्षण व्यवस्था को लेकर सवाल उठते रहे हैं, इसकी क्या वजह आप देखते हैं? उत्तर -पहली बात तो यह समझ लेनी चाहिए कि जब तक बाबा साहेब का दिया हुआ संविधान है, तब तक देश में आरक्षण व्यवस्था को कोई भी खत्म नहीं कर सकता। लेकिन जब लोग मुझसे पूछते हैं कि आप आरक्षण के पैरोकार हैं या नहीं, तो मेरा स्पष्ट उत्तर होता है कि हमें आरक्षण नहीं चाहिए, लेकिन इसके पहले देश से जातिवाद खत्म करना होगा। जब तक देश में जातिवाद है, तब तक आरक्षण ही हमारी ताकत है। सवाल- बीजेपी पर इल्जाम लगता रहा है कि वह अपर कास्ट की नुमाइंदगी करती है। आप पिछले कुछ सालों से बीजेपी के साथ हैं, आपका क्या अनुभव है? उत्तर-यह सच है कि एक वक्त बीजेपी ब्राह्मणों की पार्टी कही जाती थी, लेकिन 2014 और 2019 के चुनाव नतीजों को अगर देखा जाए, तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को जितनी बड़ी संख्या में लोकसभा सीटों पर जीत मिली है और उसका जो रेकॉर्ड वोट प्रतिशत रहा है, वह सिर्फ ब्राह्मणों के वोट देने से मुमकिन हो ही नहीं सकता, उसे सबने वोट दिया। अब वह दलितों की भी पार्टी है, पिछड़ों की भी और अल्पसंख्यकों की भी। सवाल- आरोप तो यह लगता है कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से दलितों का उत्पीड़न बढ़ा है? उत्तर- यह सही है कि दलित उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन यह उत्पीड़न केवल बीजेपी शासित राज्यों में नहीं बढ़ा है, बल्कि राजस्थान में भी बढ़ा है, जहां कांग्रेस की सरकार है और महाराष्ट्र में भी बढ़ा है, जहां शिवसेना की सरकार है। उत्पीड़न बढ़ने की एक सामाजिक वजह है। आज का दलित अच्छे कपड़े पहनने लगा है और झुककर किसी को सलाम करने को राजी नहीं है। इसी गुस्से में उसके खिलाफ उत्पीड़न की घटनाएं हो रही हैं। सवाल- लेकिन ऐसी घटनाओं को रोकना तो सरकारों का काम है? उत्तर- हां है। लॉ एंड ऑर्डर राज्य सरकारों का विषय है। उन्हें रोकना होगा। साथ में समाज को भी बदलना होगा। लेकिन इसके लिए यह कहना कि ऐसा बीजेपी की वजह से हो रहा है, यह गलत है। सवाल- आप कांग्रेस के भी सहयोगी रहे हैं और अभी बीजेपी के तो हैं ही। दोनों पार्टियों के बीच क्या बुनियादी फर्क देखते हैं? उत्तर-मुझे प्रधानमंत्री के रूप नरेंद्र मोदी इसलिए पसंद हैं कि उनका जोर फैसला लेने पर होता है। इसी वजह से उनके नेतृत्व में तमाम ऐसे बड़े-बड़े फैसले हो रहे हैं, जिनके बारे में कभी सोचा भी नहीं जा सकता था। सरकार का मूलमंत्र है- सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास। मनमोहन सिंह जननेता नहीं हैं। वे प्रशासक रहे हैं और जनता की चुनी हुई सरकार को भी वे प्रशासक के रूप में चलाते थे। सवाल- अनुसूचित जाति वर्ग की देश में करीब एक चौथाई आबादी है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कोई उसकी लीडरशिप नहीं हैं, अलग-अलग राज्यों में दलित लीडर हैं जो बीजेपी-कांग्रेस के पालों में बंटे हैं? उत्तर- मेरा तो एक प्रस्ताव था और अभी भी है, लेकिन कोई माने तब न। आरपीआई देश की सबसे पुरानी पार्टी है। देश के सारे दलित नेता, चाहे वह रामविलास पासवान हों या मायावती हों, उसमें आएं। मायावती हम सबकी अध्यक्ष बनें। सारे दलित नेता उनके नेतृत्व में व्यवस्था परिवर्तन की राजनीति करें। सवाल- बीच-बीच में दलित-मुस्लिम समीकरण तैयार करने की बात उठती है। उसे कामयाबी न मिल पाने की क्या वजह है? उत्तर- सारे दलित और सारे मुसलमान किसी एक पार्टी के साथ नहीं आ सकते। उनका बंटवारा तय है। उस बंटवारे के बाद दोनों मिलकर भी नहीं जीत सकते। हमें अलग-अलग जातियों का समर्थन तो लेना ही होगा।


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