कोरोना: हर्ड इम्युनिटी पर मिल रही कड़ी चेतावनी
नई दिल्ली वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद यानी सीएसआईआर (CSIR) के महानिदेशक शेखर मंडे ने कहा है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सामुदायिक प्रतिरक्षा यानी हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) विकसित करना 'काफी जोखिमभरा' हो सकता है। उन्होंने ये भी कहा है कि सिर्फ समय से हस्तक्षेप ही इस महामारी के फैलने को कम कर सकता है। सामुदायिक प्रतिरक्षा तब प्राप्त होती है जब आबादी का एक बड़ा हिस्सा किसी संक्रामक बीमारी से प्रतिरक्षित हो जाता है क्योंकि वे संक्रमित होकर उबर चुके होते हैं या उनका टीकाकरण किया गया हो। जब ऐसा होता है, तो रोग के उन लोगों में फैलने की आशंका कम होती है जो प्रतिरक्षित नहीं हैं, क्योंकि रोग के पर्याप्त वाहक नहीं होते हैं। इस सवाल के जवाब में कि क्या भारत के लिए सामुदायिक प्रतिरक्षा हासिल करना व्यवहार्य है, मंडे ने कहा, "यह किसी भी राष्ट्र के लिए बहुत बड़ा जोखिम है।" यह भी पढ़ें- बताया कैसे काम करती है हर्ड इम्युनिटी उन्होंने पीटीआई भाषा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि सामुदायिक प्रतिरक्षा आम तौर पर तब काम करता है, जब किसी देश की 60-70 प्रतिशत आबादी प्रभावित हुई हो और किसी भी देश के लिए यह बहुत बड़ा जोखिम है। कोई भी देश हस्तक्षेप करेगा ताकि संक्रमण नहीं फैले।" मंडे ने कहा कि दुनिया भर में लोगों ने कई सैद्धांतिक मॉडल आयोजित किए हैं और भारत में भी ऐसा लगता है कि कोविड -19 के कुछ चरण हो सकते हैं तथा लोगों को उनके लिए तैयार रहने की जरूरत है। वह बोले, "मामलों की संख्या कम होती जाएगी और लोगों को तैयार रहने की जरूरत है क्योंकि कोविड-19 का दूसरा दौर हो सकता है।’’ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के बीच गतिरोध के बारे में मंडे ने कहा कि यह "अच्छा संकेत नहीं" है। उन्होंने कहा, ‘‘डब्ल्यूएचओ एक महत्वपूर्ण निकाय है जिसने एक अहम भूमिका निभाई है। यह चेचक उन्मूलन, पोलियो वायरस उन्मूलन में शामिल रहा है और इसने देशों के साथ बहुत अच्छा काम किया है। संबंधों का समाप्त करना अच्छा संकेत नहीं है।’’ यह भी पढ़ें- कोरोना से जंग में पांच आयामी दृष्टिकोण मंडे ने आगे कहा कि सीएसआईआर ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में पांच-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है जिसमें निगरानी, निदान और नए उपचारों के माध्यम से हस्तक्षेप, अस्पताल के सहायक उपकरण और आपूर्ति श्रृंखला मॉडल शामिल हैं। टीका विकसित किए जाने के मोर्चे पर उन्होंने कहा कि तीन अलग-अलग तरीकों को अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि एक प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाला टीका है जिस पर देश में तीन अलग-अलग स्थानों पर परीक्षण चल रहा है और अगले 15 दिनों में इसका परिणाम आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि दूसरा ‘‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’’ है जिसे सीएसआईआर ने एनसीसीएस (नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस) पुणे, आईआईटी इंदौर और भारत बायोटेक के बीच एक सहयोगी कार्यक्रम के तहत वित्तपोषित किया है। मंडे ने कहा कि तीसरा प्लाज्मा थेरेपी है जिसका परीक्षण कोलकाता में चल रहा है। उन्होंने आगे कहा कि टीके के विकास की प्रक्रिया में भारतीय कंपनियां काफी गहराई से लगी हुयी हैं।
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