6 अस्पताल के चक्कर, 7वें के रास्ते में हुई मौत
युद्धवीर राणा, अमृतसर सात साल के बच्चे की सांसें कभी भी थम सकती थीं। बच्चे को सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। परिजन उसे लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर काट रहे थे। लेकिन डॉक्टर ही नहीं मिल रहे थे। यह सिलसिला छह अस्पतालों तक चला। जिंदगी की उम्मीद लिए परिजनों ने सातवें अस्पताल का रुख किया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मामला पंजाब के पठानकोट का है। हैरानी की बात ये है कि जिन छह अस्पतालों के परिजनों ने चक्कर लगाए उनमें से दो सिविल हॉस्पिटल थे। इसे हेल्थ सिस्टम की नाकामी नहीं तो क्या कहेंगे कि छह-छह अस्पताल एक बच्चे को जिंदगी नहीं दे सके। लंदन में सेटल हो चुके डॉक्टर धीरज सिंह मूल रूप से पठानकोट जिले के हैं। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के संवाददाता उनके गृह शहर सुजानपुर पहुंचे। डॉक्टर धीरज ने बताया कि बच्चा उनके पिता के यहां काम करने वाले उपिंदर जोशी का है, जो मूल रूप से बिहार के हैं। जोशी 1995 से पठानकोट में रह रहे हैं। पढ़ें: मंगलवार सुबह जब जोशी के बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हुई तो जोशी ने डॉक्टर धीरज को मदद के लिए फोन लगाया। कृष्णा नाम के इस बच्चे को जो समस्या थी उसके लिए लंदन बेस्ड डॉक्टर को इक्विपमेंट की जरूरत थी। लेकिन स्टेथोस्कोप समेत जरूरी उपकरण नहीं होने की वजह से वह परीक्षण नहीं कर सके। इसके बाद परिजन एक नजदीकी अस्पताल पहुंचे लेकिन वहां भी डॉक्टर ने चेकअप से इनकार कर दिया। इसके बाद वे बच्चे को लेकर एक प्राइवेट अस्पताल पहुंचे लेकिन यहां भी वही हाल रहा। डॉक्टर धीरज का कहना है, 'एक डॉक्टर के रूप में मैंने अस्पताल स्टाफ से इमरजेंसी के बारे में बात करते हुए एक सीनियर डॉक्टर की जरूरत पर जोर दिया। लेकिन वे तैयार नहीं थे। इसके बाद मेरे भाई ने 108 ऐम्बुलेंस पर फोन किया और हम बच्चे को लेकर सुजानपुर सिविल अस्पताल पहुंचे।' कोरोना वायरस: लेकिन वहां हालात इससे भी बदतर थे। मजबूरन हम लोगों ने ऐम्बुलेंस के ड्राइवर से पठानकोट सिविल अस्पताल छोड़ने की गुजारिश की। डॉक्टर धीरज ने बताया कि यहां भी उन्होंने पूछा कि क्या ईएनटी (आंख-नाक और गला) स्पेशलिस्ट या सर्जन बच्चे को देख सकते हैं लेकिन एक जूनियर डॉक्टर ने ही बच्चे का चेकअप किया। नर्सिंग स्टाफ ने कहा कि सीनियर डॉक्टर कोरोना के लिए बने आइसोलेशन वॉर्ड में हैं। इसके बावजूद कोई डॉक्टर बच्चे को देखने नहीं पहुंचा। डॉक्टर धीरज ने बताया, 'एक बार फिर हम एक जाने-माने मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल पहुंचे लेकिन जैसे ही स्टाफ ने ऐम्बुलेंस का हूटर बजते देखा, उन्होंने कहा कि इमरजेंसी केस देखने के लिए हमारे पास डॉक्टर नहीं हैं।' एक अन्य अस्पताल पर बच्चे को एक फार्मासिस्ट ने देखा। डॉक्टर धीरज उन लम्हों का जिक्र करते हुए बताते हैं, 'मैं किसी तरह बच्चे को संभालने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे स्पेशलिस्ट की जरूरत थी। इसके बाद हम एक और मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल के लिए निकले लेकिन रास्ते में ही बच्चे ने दम तोड़ दिया।' इस बीच पठानकोट सिविल अस्पताल प्रशासन ने किसी तरह की लापरवाही से इनकार किया है। पठानकोट के सिविल सर्जन डॉक्टर विनोद सरीन ने कहा कि अस्पताल स्टाफ की तरफ से कोई लापरवाही नहीं की गई। उनका कहना है कि पठानकोट सिविल अस्पताल में बच्चे को लाने से पहले ही मौत हो चुकी थी।
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