दिल्ली दंगा: मुर्दाघर में अपनों को तलाशते पीड़ित

नई दिल्ली पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़की थम गई है, लेकिन जिन लोगों के अपने अब तक लापता हैं वे अब घबरा रहे हैं। आलम अफरोज जैसे लोग अपनों की तलाश में अस्पतालों की मोर्चरी के चक्कर लगा रहे हैं। 52 वर्षीय अफरोज ने कहा कि लगातार अपने बेटे की तलाश कर रहा हूं, लेकिन उसकी कोई खोज खबर नहीं है। बेहद दुखी होकर उन्होंने कहा कि उसकी लाश नाले में ही मिले, कम से कम मुझे यह तो पता चल जाएगा कि वह हमें छोड़कर चला गया है। उन्होंने आगे कहा, 'मैं जब भी घर जाता हूं तो मेरी बहू और पोती लगातार सवाल पूछती है, लेकिन मैं उसका कोई जवाब नहीं दे पा रहा हूं।' मदीना का बेटा कहां है? आपको बता दें कि दंगों के दौरान लापता होने के एक दिन बाद चांद बाग में एक नाले में आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा का शव मिला था जिसपर चाकू से कई बार वार किए गए थे। ऐसे में नालों में तलाश जारी है। 48 वर्षीय मदीना का बेटा मंगलवार से लापता है। वह गुरु तेग बहादुर अस्पताल (जीटीबी) के मोर्चरी विभाग के चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है। उन्होंने कहा कि वह कई पुलिस थानों में जा चुके हैं, लेकिन उनके बेटे को लेकर कोई सूचना नहीं मिल रही है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर उनका बेटा जिंदा है या इस दुनिया से विदा हो चुका है। मदीना ने कहा कि अगर कुछ पता नहीं चलता है तो पूरे परिवार को उम्मीद लगी रहेगी कि उनका बेटा जिंदा है और एक दिन वह जरूर घर लौटेगा। पढ़ें, दोस्त से मिलने गए आफताब की खबर नहीं बिजनौर के रहने वाले मोहम्मद कादिर बुधवार से लगातार जीटीबी अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने 18 वर्षीय बेटे आफताब के बारे में कोई सूचना नहीं मिल रही है। उन्होंने बताया कि आफताब अपने दोस्त से मिलने गया था। पूछताछ में दोस्त ने बताया कि उस दिन भीड़ ने उनपर धावा बोल दिया था। आफताब भीड़ के हाथ लग गया। दोस्त वहां से भागने में सफल रहे। उसके बाद से उसकी कोई खोज खबर नहीं है। फिरोज को ढूंढ रहे हैं परिवार वाले 22 वर्षीय मोनिस 25 फरवरी से लापता था। उसके घर वाले लगातार उसकी तलाश कर रहे थे। शुक्रवार को परिवार वाले मोनिस की तलाश में जीटीबी अस्पताल पहुंचे थे, जहां मां ने उसके शव की शिनाख्त की। वहीं, 35 वर्षीय मोहम्मद फिरोज के परिवार वालों को जीटीबी अस्पताल में भी आकर निराशा हाथ लगी है। पत्नी शबाना ने बताया कि फिरोज काम से घर लौट रहा था तभी उसकी पिटाई की गई। उस हमले के दौरान उसका फोन शायद टूट गया था। पढ़ें, उन्होंने बताया कि फिरोज को एक मुस्लिम परिवार ने बचाया और अपने यहां आश्रय दिया था। इसके बाद 24 फरवरी को फिरोज ने अपने भतीजे को कॉल किया था, जिसके बाद से उसकी कोई खबर नहीं है। पति के साथ अंतिम बार हुई बातचीत को याद करते हुए शबाना ने बताया कि उन्होंने कहा था उनकी काफी पिटाई हुई है। बिजली नहीं है और फोन की बैटरी खत्म होने वाली है इसलिए वह ज्यादा बात करने में सक्षम नहीं है। शबाना समझ नहीं पा रही हैं कि उनका पति जिंदा है भी या नहीं। उन्हें अंदेशा है कि उनके पति ने जिस घर में पनाह ली थी वह कहीं आग के हवाले तो नहीं कर दिया गया। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि उनके पति अभी भी जिंदा हैं। उन्होंने बताया कि उनके पति टीबी (तपेदीक) से ग्रसित थे, जिसके चलते वह काफी कमजोर हो गए थे। परिवार के लोगों ने कहा कि वह फिरोज की तलाश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में भी जाएंगे। पढ़ें: मालूम हो कि में पुलिस ने अबतक 167 प्राथमिकी दर्ज की है। इसके अलावा 885 लोग या तो गिरफ्तार किए गए या हिरासत में लिए गए हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध और समर्थन को लेकर शुरू हुई हिंसा में 42 लोगों की जान गई है और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, यमुना विहार, भजनपुरा, चांद बाग और शिव विहार के इलाके में सबसे ज्यादा हिंसा का असर देखने को मिल रहा है। हिंसा में घायल और भी लोगों की जान जाने की आशंका है। जनजीवन धीरे-धीरे हो रहा सामान्य दंगाग्रस्त इलाकों में अब जनजीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगा है। सुरक्षाकर्मियों की व्यापक गश्त के बीच खुलीं कुछ दुकानों से किराने का सामान और दवाइयां खरीदने के लिए लोग अपने घरों से बाहर निकले। स्थानीय निवासी इस सप्ताह की शुरुआत में इलाके में हुए सांप्रदायिक दंगों में पहुंचे नुकसान से धीरे-धीरे उबरने की कोशिश कर रहे हैं। मलबा हटाने में जुटे कर्मचारी हिंसा के दौरान संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचा है। उग्र भीड़ ने मकानों, दुकानों, वाहनों, पेट्रोल पंपों को फूंक दिया और स्थानीय लोगों तथा पुलिसकर्मियों पर पथराव किया। सांप्रदायिक हिंसा में सबसे बुरी तरह प्रभावित इन इलाकों में पिछले पांच दिनों की तुलना में सड़कों पर अधिक वाहन और लोग दिखे। कई इलाकों में शनिवार सुबह से ही नगर निगम के कर्मचारियों को ईंटों, कांच के टुकड़े और जले हुए वाहनों को हटाते देखा गया। कुछ स्थानों पर, यहां तक कि बुलडोजर का भी इस्तेमाल किया गया क्योंकि मलबे को हाथ से हटाना मुश्किल था। दुकानों को हुआ है सबसे ज्यादा नुकसान और अर्धसैनिक बलों के कर्मियों ने लोगों को अपनी दुकानें खोलने के लिए प्रोत्साहित किया और शांति तथा सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की अपील की। सुरक्षाकर्मियों ने जाफराबाद में फ्लैग मार्च किया और मौजपुर तथा फिर नूर-ए-इलाही, यमुना विहार और भजनपुरा की संकरी गलियों में गए, जहां इस सप्ताह के शुरू में भीड़ ने दुकानों, मकानों और वाहनों में तोड़फोड़ की और उनमें आग लगा दी थी। स्कूलों पर अब भी लगा है ताला उत्तर-पूर्वी दिल्ली के स्कूल अभी भी बंद हैं। हिंसा के मद्देनजर सात मार्च तक स्कूल बंद रहेंगे। अधिकारियों के अनुसार हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में परीक्षाएं आयोजित कराने के लिए स्थिति अनुकूल नहीं है, इसलिए वार्षिक परीक्षाओं को भी स्थगित कर दिया गया है। एक शोरूम के मालिक, जिनकी संपत्ति पर दंगों के दौरान हमला हुआ था, ने कहा, ‘आज केवल छोटी दुकानें ही खुली हैं। बड़ी दुकानें और शोरूम अभी भी नहीं खुले हैं और उनके मालिक सतर्क हैं।’ नूर-ए-इलाही के रहने वाले शाकिब ने कहा कि ठेले पर सब्जियां बेचने वाले लोग कॉलोनियों के चक्कर लगाते हैं। उनमें से बहुत कम नजर आ रहे हैं, लेकिन कम से कम उन्होंने बिक्री फिर से शुरू कर दी है। यमुना विहार के निवासी अमित तंवर ने कहा कि स्थिति में सुधार हुआ है और दिन में किराने की दुकानें और अन्य दुकानें खुलीं।


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