सेना का अपमान, किन-किन के कैसे-कैसे बयान
नई दिल्ली देश में कोई विवादित मुद्दा हो तो अकसर यह देखा जाता है कि नेता और कद्दावर लोग सेना को बीच में ले आते हैं। कई बार जाने-अनजाने इनका निशाना बन जाती है। अब लेखक ने भारतीय सेना को लेकर विवादित बयान दे दिया है। तपन से पहले भी कई जाने-माने नेता और सेलिब्रिटी सेना पर विवादित बयान दे चुके हैं। बड़ा सवाल यह है कि आखिर देश की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा देने वाली भारतीय सेना इन कद्दावरों के निशाने पर क्यों आ जाती है। यह एक चलन बन पड़ा है कि कोई भी मुद्दा हो नेता, सेलिब्रिटी सेना को बीच में ले आते हैं। जबकि दुनिया के दूसरे देशों में सेना को लेकर शायद ही कभी सवाल खड़े किए जाते हैं। क्या लोकतांत्रिक आजादी का मतलब यही है कि आप जब चाहें तब देश के इन प्रहरियों के लिए कुछ भी बोल दें? आपको बताते हैं कि कब-कब भारतीय सेना को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं। देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में अलग-अलग जगहों पर लगातार प्रदर्शन जारी हैं। राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में करीब डेढ़ महीने से प्रदर्शनकारी धरने पर बैठे हैं। दिल्ली चुनाव में भी शाहीन बाग एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है। बुधवार को जंतर-मंतर पर के विरोध में धरना-प्रदर्शन शुरू हो गया। जंतर-मंतर पर इस प्रदर्शन को अपना समर्थन देने प्रसिद्ध लेखक तपन घोष भी पहुंचे। लेखक और ऐक्टिविस्ट तपन घोष ने भारतीय सेना पर विवादित बयान दे दिया है। इस मौके पर तपन घोष ने कहा, 'भारतीय सेना अपने लोगों को मारती है। पाकिस्तान हमारा दुश्मन नहीं, असली आतंकी तो गोरक्षक हैं।' संदीप दीक्षित: थल सेना अध्यक्ष का व्यवहार सड़क के गुंडे की तरह हाल ही में संदीप दीक्षित ने कहा था, 'हमारी सेना सशक्त है। जब भी पाकिस्तान वहां हरकत करता है सेना उसको जवाब देती है यह सबको मालूम है। वो दूसरी बात है कि आज के प्रधानमंत्री, आज लोग इस बात को ज्यादा जोर से चिल्लाते हैं, लेकिन हमारी सेना सशक्त है और हमेशा हमने सीमा पर पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है। आज की बात नहीं यह पिछले 70 साल से चला आ रहा है। पाकिस्तान एक ही चीज कर सकता है कि इस तरह की उलूल-जुलूल चीजें करे, बयानबाजी करे। खराब तब लगता है जब हमारे थल सेना अध्यक्ष सड़क के गुंडे की तरह अपने बयान देते हैं। पाकिस्तान का दे तो दे...वो तो हैं हीं। पाकिस्तान फौज में क्या रखा है वे तो माफिया टाइप के लोग हैं, लेकिन हमारे सेना अध्यक्ष भी इस तरह के बयान क्यों देते हैं।' हालांकि बाद में विवाद बढ़ता देख संदीप दीक्षित ने माफी मांगते हुए कहा, 'मैं वास्तव में विश्वास करता हूं कि जो मैंने कहा वह गलत था। इसलिए मैं माफी मांगता हूं और बयान वापस लेता हूं।' कन्हैया कुमार: सुरक्षाबलों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार 2016 में महिला दिवस पर कन्हैया ने स्पीच के दौरान कहा था कि 'तुम लाख कोशिश कर लो, हम ह्यूमन राइट्स वॉयलेशन पर बोलेंगे, हम एएफएसपीए (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स ऐक्ट्स) के खिलाफ बोलेंगे। सैनिकों का सम्मान करते हुए इस बात को बोलेंगे कि कश्मीर में महिलाओं से सुरक्षाबल के द्वारा अत्याचार किया जाता है।' कन्हैया की इस टिप्पणी पर देशभर में ऐतराज जताया गया था। अरुंधति रॉय: अपने ही लोगों के खिलाफ सेना की तैनाती अरुंधति रॉय ने 2011 में विवादित टिप्पणी करते हुए कहा था, 'कश्मीर, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड जैसे राज्यों में हम जंग लड़ रहे हैं। 1947 से ही हम कश्मीर, तेलंगाना, गोवा, पंजाब, मणिपुर, नगालैंड में लड़ रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है, जिसने अपनी सेना अपने ही लोगों के खिलाफ तैनात की। पाकिस्तान ने भी कभी इस तरह से सेना को अपने ही लोगों के खिलाफ नहीं लगाया।' अरुंधति रॉय ने कहा था कि पूर्वोत्तर में आदिवासी, कश्मीर में मुस्लिम, पंजाब में सिख और गोवा में ईसाइयों से भारतीय राज्य लड़ रहा है। ऐसा लगता है, जैसे यह अपरकास्ट हिंदुओं का ही स्टेट हो। हालांकि, पिछले साल अरुंधति रॉय ने अपने इस बयान को लेकर माफी मांगी थी। पी चिदंबरम: जनरल करें अपना काम पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जनरल बिपिन रावत को आड़े हाथ लेते हुए कहा था, 'डीजीपी और आर्मी जनरल से सरकार का समर्थन करने को कहा जा रहा है। यह शर्मनाक है। मैं जनरल रावत (बिपिन रावत) से अपील करता हूं कि आर्मी की अगुवाई करें और अपना काम करें। नेताओं को जो करना है, वे करेंगे।' बता दें कि जनरल बिपिन रावत ने एक कार्यक्रम में कहा था कि अगर नेता लोगों को हिंसा और आगजनी करने के लिए उकसाता है तो उसे नेतृत्व नहीं कहा जा सकता है। प्रशांत भूषण: सेना कर रही ह्यूमन राइट्स का हनन! आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता ओर मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने साल 2014 में कहा था, 'कश्मीर के लोगों से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे कश्मीर की आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा सेना को देना चाहते हैं या नहीं। जिस फैसले में जनता की सहमति न हो, वह अलोकतांत्रिक होता है। अगर कश्मीरियों को लगता है कि सेना उनके ह्यूमन राइट्स का हनन कर रही है और वे नहीं चाहते कि उनकी सुरक्षा के लिए सेना तैनात की जाए तो उसे हटा लिया जाना चाहिए।'
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