बच्चों को बंधक बनानेवाले के दिमाग में क्या था?

हिमांशु तिवारी, फर्रुखाबाद यूपी के फर्रुखाबाद जिले के में गुरुवार को नाम के एक शख्स ने 21 बच्चों को बंधक बना लिया था। उसने बच्चों को अपनी बच्ची की जन्मदिन के नाम पर बुलाया था। सुभाष ने लोगों के साथ-साथ पुलिस टीम पर फायरिंग की और बम फेंके। आखिरकार देर रात सुभाष बाथम को पुलिस ने मार गिराया। हालांकि, इस घटना के साथ ही ढेरों सवाल हैं। सवाल यह है कि जिस तरह से हथियारों का जखीरा सुभाष के घर में मिला क्या इसकी किसी को भी भनक नहीं थी। अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काटने के बावजूद टॉइलट और प्रधानमंत्री आवास न मिलने की बात कहने वाले सुभाष के पास इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक खरीदने का पैसा कहां से आया। एनबीटी ऑनलाइन ने इस पूरी घटना को लेकर लखनऊ के जाने माने साइकायट्रिस्ट डॉक्टर विकास दीक्षित और चर्चित मनोवैज्ञानिक आलोक चांटिया से बात की। साइकायट्रिस्ट डॉक्टर विकास दीक्षित फर्रुखाबाद में हुई घटना को लेकर कहते हैं, 'अबतक जितना पता चला है सुभाष बाथम के बारे में, वह पर्सनालिटी डिसऑर्डर यानी स्वभाव की बीमारी से ग्रसित था। इसे हम ऐंटी सोशल पर्सनालिटी डिसऑर्डर कहते हैं। इन्हें नियम, कायदे, कानून का डर नहीं होता है। झूठ बोलना, चोरी करना यह इनके लिए आम होता है। इन सब चीजों को ऐसे लोग गलत नहीं मानते हैं। इन्हें काउंसलिंग दी जा सकती है, मेडिकल की भाषा में इसे साइको थेरेपी भी कहते हैं। बाकी कुछ ऐसे मूड स्टेबलाइजर्स हैं, जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है।' 'प्लान के तहत किया गया था जुर्म'इस मामले में मनोवैज्ञानिक आलोक चांटिया कहते हैं, 'हमें ख़बर के हर पहलू पर गौर करना होगा। यदि उसे टॉइलट और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर की जरूरत थी तो इतना विस्फोटक खरीदने में किसने मदद की। दूसरी चीज 2001 में वह अपने मौसा की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाया था, फिर उसे 10 साल के बाद उसके अच्छे आचरण को देखते हुए ही तो जमानत दी गई होगी। ऐसे में क्या सुभाष प्लान के तहत अच्छा आचरण कर रहा था? एक सजायाफ्ता के घर में ग्रामीणों ने अपने बच्चों को जाने कैसे दिया, यह भी सवाल बनता है। बाकी यह घटना पूर्व नियोजित थी। उसने पत्र टाइप कराकर रखा था, विधायक को बुलाने की मांग की थी। बच्चों को इस तरह से अपनी मांगें मनवाने के लिए इस्तेमाल करना मतलब यह भी है कि उसे यकीन था कि ऐसे ही उसकी बात सुनी जाएगी।' पढ़ें: 'समाज में पनप रहा है आक्रोश' आलोक चांटिया कहते हैं, 'इसमें बात न सुने जाने को लेकर अवसाद की आशंका भी रहती है। ऐसा तभी होता है जब या तो शख्स वाकई अपराधी प्रवृत्ति का हो वरना संभव यह भी है कि उसके साथ ज्यादती हुई हो और बात न सुनी जा रही हो। हमें समाज में पनप रहे आक्रोश को भी समझना होगा।' पढ़ें:


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