इस साल भी सुप्रीम कोर्ट से आएंगे ये बड़े फैसले

धनंजय महापात्र, नई दिल्ली ने 2019 में 70 साल से चले आ रहे अयोध्या विवाद पर सर्वसम्मति से फैसला दिया। इसने फ्रांस से 36 राफेल युद्धक विमानों की खरीद को भी हरी झंडी दी। इस लिहाज से उच्चतम न्यायालय के इतिहास में गत वर्ष काफी महत्वपूर्ण रहा। खासकर, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में 40 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद विभिन्न पृष्ठभूमि से आए पांचों जजों का एकमत होना काबिले तारीफ रहा। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अयोध्या बेंच की अध्यक्षता भी सराहनीय रही। फैसला इस मायने में भी अनूठा था क्योंकि इसे लिखने वाले का नाम सामने नहीं आया। यानी, बेंच के लीडर ने फैसले में जस्टिस एसए बोबडे (अब चीफ जस्टिस), जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर की बराबर भूमिका मानी। राफेल का विवाद सुलझाया राफेल जेट बनाने वाली फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन के साथ अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस की ऑफेसट पार्टनर के रूप में जुड़ाव को लेकर भी देश में जमकर बवाल मचा। मीडिया के एक खास वर्ग ने कुछ दस्तावेजों के आधार पर आशंकाएं प्रकट कीं तो सुप्रीम कोर्ट को एनडीए सरकार को दी गई क्लीन चिट के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा। कोर्ट ने प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा ने फैसले पर गंभीरता से विचार किया और पुराने फैसला ही दोहराया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को राफेल पर दिए अपने बयान के लिए सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगनी पड़ी। 7 सदस्यीय पीठ के पास सबरीमाला विवाद सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला अयप्पा मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश निषेध की परंपरा को भी नकारा। इस पर दोबारा विचार की मांग की गई तो कोर्ट ने इसे 7 जजों की बेंच को ट्रांसफर करने का फैसला किया। पांच सदस्यीय बेंच के ज्यादातर जजों ने कहा कि 7 सदस्यीय बेंच को एक दिशा निर्देश तय करना चाहिए ताकि भविष्य में मौलिक अधिकारों एवं धार्मिक रीति-रिवाजों के बीच उलझन की स्थिति में फैसला देते वक्त उसका सहारा लिया जा सके। बड़ी बेंच को दूसरे धर्मों में भी भेदभावपूर्ण रिवाजों, मसलन मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दूसरे समुदाय में विवाह करने वाली पारसी महिलाओं को अगियारी में प्रवेश और बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना की परंपरा आदि पर विचार करना है। 2020 की चुनौतियां सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या, राफेल और सबरीमाला जैसे बेहद संवेदनशील विवादों पर फैसला तो दे दिया, लेकिन इस वर्ष भी उसके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। उसे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की संवैधानिकता का सवाल हल करना है जिसके खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन हुए। जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई में निर्मित एक अन्य संविधान पीठ को 70 साल पुराने आर्टिकल 370 को जम्मू-कश्मीर से निष्प्रभावी करते हुए राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभक्त करने के केंद्र सरकार के फैसले की भी संवैधानिकता पर फैसला देना होगा। जस्टिस रमना की अध्यक्षता वाली बेंच 5 अगस्त, 2019 से जम्मू-कश्मीर में मोबाइल फोन और इंटरनेट पर लागू प्रतिबंधों की वैधता पर भी फैसला देगी। कर्नाटक के विधायकों की अयोग्यता पर फैसला सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल कर्नाटक विधानसभाध्यक्ष द्वारा कांग्रेस और जेडी(एस) के 15 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के फैसले पर अपनी मुहर लगाकर लोकतांत्रिक मूल्यों में आमजन का विश्वास मजबूत किया। हालांकि, जस्टिस रमना की अगुवाई वाली बेंच ने तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष की इस बात पर खिंचाई भी की कि उन्होंने पद की गरिमा का ख्याल रखते हुए निष्पक्षता का ध्यान नहीं रखा और सत्ताधारी दल की मर्जी से फैसले लेते रहे। CBI vs CBI पर फैसला सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ही सीबीआई बनाम सीबीआई के संघर्ष को भी सुलझाया। कोर्ट ने तत्कालीन सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के व्यक्तिगत विवाद एवं सीबीआई चीफ की शक्तियां क्षीण करते हुए दो टॉप सीबीआई अफसरों को छुट्टी पर भेजने के केंद्र सरकार के अधिकारों पर भी फैसला दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को उनके पद पर बहाल कर दिया, लेकिन पीएम की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति ने तुरंत उन्हें पद से हटाने का फैसला किया। उच्चतम न्यायालय ने सिनेमाघरों में 'भोविष्यतेर भूत' नहीं चलाने का अनाधिकारिक दबाव बनाने के लिए प. बंगाल पुलिस की कड़ी फटकार लगाई। इसने यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को भी जमानत दी।


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