गठबंधन, सेक्युलरिज्म... हर सवाल पर NCP का जवाब

नई दिल्लीमहाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर हाई वोल्टेज सियासी ड्रामा आखिर समाप्त हुआ, लेकिन कई सवालों के जवाब अब भी मिलने बाकी हैं। सूबे में शिवसेना को साथ लाने और कांग्रेस को भी इसके लिए तैयार करने में एनसीपी की अहम भूमिका है। एनसीपी को ही इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा झटका भी लगा, लेकिन उसके लिए संतोष की बात यह है कि उसने सारी मुश्किलों से पार पाने में कामयाबी पा ली। इसीलिए उद्धव सरकार का रिमोट शरद पवार के हाथों में रहने की बात कही जा रही है। एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक से कई अहम मसलों पर नवभारत टाइम्स के संवाददाता नरेंद्र नाथ ने बात की... गठबंधन की सरकार तो बन गई, लेकिन गठबंधन का भविष्य क्या है? सरकार कितने दिन चलेगी? - हताशा से भरकर बीजेपी ही यह प्रचारित कर रही है कि गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चलेगा। अलग-अलग राजनीतिक दल जब साथ आते हैं तो एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनता है। हम तीनों दलों ने इसे बहुत सोच-समझ कर बनाया है। इसमें वह हर बिंदु शामिल है, जिस पर भविष्य में टकराव हो सकता था। जब हम लोग इसे बनाने के लिए बैठ रहे थे, तब बीजेपी यह प्रचारित करने में लगी थी कि ये दल कभी न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं बना सकते। अब जब बन गया तो उसका दुष्प्रचार है कि यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चलेगा। इतना तय मान लें कि अगर यह सरकार बनी है तो चलेगी भी और पूरे पांच साल चलेगी। शिवसेना आक्रामक हिंदुत्व की पैरोकार रही है, एनसीपी-कांग्रेस को सेक्युलर खेमा कहा जाता है। कैसे बनेगा संतुलन? - जो लोग विचारधारा का संकट देख रहे हैं, उन्हें वस्तुस्थिति की जानकारी ही नहीं है। शिवसेना का इतिहास देखें। वह महाराष्ट्र के हित के लिए बनी पार्टी है, जिसका मकसद मराठा अस्मिता की रक्षा करना है। पार्टी का जन्म महाराष्ट्र के लिए हुआ था, धर्म के लिए नहीं। बीजेपी के साथ जाने के बाद शिवसेना बिगड़ी। शिवसेना को भी अहसास हो गया कि बीजेपी ने उसका उपयोग किया और जिस मूल उद्देश्य से पार्टी बनी थी वह पूरा नहीं हो पा रहा। एनसीपी का जन्म भी महाराष्ट्र के हित के लिए हुआ। अगर विचारधारा की बात करें तो शिवसेना और एनसीपी का लक्ष्य एक ही रहा है। अब हम साथ आ गए हैं। बीजेपी-शिवसेना से मजबूत गठबंधन हमारा होगा। शिवसेना का साथ लंबा चलेगा। जिस न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर इतना जोर है आप लोगों का, उसमें आखिर क्या खास है? - वह सामने आ गया है। जिसको देखना है, देख ले। इतना मान लीजिए कि शरद पवार ने तय करवा दिया है कि सेक्युलर विचारधारा से यह सरकार चलेगी, जिसमें सभी को साथ लेकर चला जाएगा। अजित पवार का बीजेपी के साथ जाना और फिर लौट आना... कई लोग कह रहे हैं कि यह सब पूर्वनियोजित था। क्या कहेंगे? - ऐसी बातों में कोई सच्चाई नहीं है। सभी जानते हैं कि अजित दादा भावुक व्यक्ति हैं। कई बार दिमाग की जगह दिल का इस्तेमाल कर लेते हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पूर्व में तीन मौकों पर वह जज्बात में आकर पद भी छोड़ चुके हैं। लेकिन परिवार और संगठन दोनों उनके इस स्वभाव से वाकिफ हैं। यह भी सही है कि वह बेहतरीन प्रशासक हैं। संगठन चलाते हैं। टास्क पूरा करते हैं। सालों की मेहनत से पार्टी खड़ी की है। गलती को मानने वाला इंसान बहुत बड़ा होता है और उसे माफ करने वाला उससे भी बड़ा। शरद पवार और अजित पवार दोनों ने बड़ा दिल दिखाया। अब सब ठीक है। महाराष्ट्र में नए गठबंधन के इस प्रयोग का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर देखते हैं? - बहुत अधिक असर पड़ेगा। जिस तरह महाराष्ट्र के दो बड़े क्षेत्रीय दल एक मंच पर आए, उसका संदेश बड़ा है। क्षेत्रीय दल सभी राज्यों में और ताकतवर बन कर उभरेंगे। इस प्रयोग ने दिखाया है कि बीजेपी के एकाधिकार को हम चुनौती दे सकते हैं और जोड़-तोड़ की राजनीति का मुकाबला कर सकते हैं। यह डरे-सहमे विपक्ष में नया विश्वास पैदा करेगा। बड़े दलों को साफ संदेश मिल गया कि क्षेत्रीय दलों को नकारा नहीं जा सकता है। साथ ही धर्म आधारित राजनीति को नकारने का ट्रेंड बढ़ेगा। भारत राज्यों का समूह है। क्षेत्रीय अस्मिता की राजनीति फिर शुरू होगी।


from India News: इंडिया न्यूज़, India News in Hindi, भारत समाचार, Bharat Samachar, Bharat News in Hindi https://ift.tt/2R2EQ6u

Comments

Popular posts from this blog

चिदंबरम की मुश्किलें बढ़ीं, ED ने मांगी गिरफ्तारी

संपादकीय: उपचुनाव का संदेश, I.N.D.I.A गठबंधन बनने के बाद की पहली भिड़ंत

विशुद्ध राजनीति: विपक्षी बैठक के बाद ममता खफा, राहुल का विदेश दौरा, स्पेशल सेशन पर सस्पेंस, देश की राजनीति में सब घट रहा