3 तलाक बिल रास में, यूं पास कराएगी सरकार

नई दिल्ली लंबे समय से लंबित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पर राज्यसभा में बहस हो रही है। इस बिल पर बीजेपी को बीजेडी का साथ मिल गया है। बीजेडी ने अपने 7 सांसदों को बिल के समर्थन में वोट करने को कहा है। दूसरी तरफ, अब तक इस बिल पर विरोध में वोट करने की बात कहने वाला एनडीए का घटक दल जेडीयू ने सदन से वॉकआउट कर दिया है। जेडीयू के वॉकआउट करने से बीजेपी की राह और आसान हो गई है। बता दें कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी तीन तलाक बिल लोकसभा में तो पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था। तीन तलाक बिल पर राज्य सभा में बहस जारी है। इसके बाद वोटिंग होगी। बीजेपी ने सोमवार को ही विप जारी कर अपने सभी सांसदों को सदन में मौजूद रहने को कहा था। वहीं कांग्रेस और टीएमसी ने भी इसके लिए तैयारी कर ली है। राज्यसभा बीजेडी में पार्टी लीडर प्रसन्न आचार्य ने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, 'बीजेडी राज्यसभा में ट्रिपल तलाक बिल का समर्थन करेगी।' जेडीयू ने चौंकाया बीजेपी को बीजेडी के ऐलान से थोड़ी राहत मिली थी, लेकिन जेडीयू के वॉकआउट करने से बीजेपी की राह और आसान हो गई है। अब तक बीजेपी की सहयोगी जेडीयू इस बिल के विरोध में वोट करने की बात कह रही थी। ऐसे में बीजेपी के लिए इस बिल को पास करना काफी मुश्किल हो जाता। लेकिन जेडीयू के वोटिंग में हिस्सा न लेने से बीजेपी ने जरूर राहत की सांस ली होगी। इसके अलावा बीजेपी को उम्मीद है कि उसे आरटीआई संशोधन बिल में समर्थन करने वाले कुछ अन्य दलों का भी समर्थन मिल सकता है। हालांकि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने ऐलान किया है कि वह इस बिल के विरोध में वोट करेगी। क्या कहता है नंबर गेम 245 सदस्यों की राज्यसभा में 4 सीटें खाली हैं। ऐसे में 241 सदस्यों के इस सदन में बहुमत का आंकड़ा 121 है। अभी सत्ताधारी एनडीए गठबंधन को राज्यसभा में 12 मनोनीत, 7 बीजेडी और निर्दलीय सांसदों समेत कुल 114 सदस्यों का समर्थन हासिल है। जेडीयू के 6 सांसदों के वॉकआउट करने की स्थिति में बहुमत का आंकड़ा 118 पर आ जाएगा। ऐसे में बीजेपी को बहुमत के लिए महज 4 वोटों की जरूरत होगी। अब अगर टीआरएस के 6 सदस्य बिल का समर्थन कर दें या सदन से वॉकआउट करें तो सरकार का काम बेहद आसान हो जाएगा। बीजेपी दोबारा सत्ता में आने के बाद संसद के पहले ही सत्र में इस बिल को कानून का रूप देना चाह रही है। कई विपक्षी दल इस विधेयक का तीखा विरोध कर रहे हैं, जबकि सरकार का कहना है कि यह लैंगिक न्याय और समानता का मसला है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके जैसे दलों की मांग है कि सरकार को इस विधेयक को उच्च सदन में पेश करने से पहले इससे संसदीय पैनल के पास स्क्रूटनी के लिए भेजना चाहिए।


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