BJP को नजरंदाज नहीं कर सकतीं JDU-सेना
कुमार अंशुमान, नई दिल्ली बीजेपी की 2 सबसे पुरानी सहयोगियों में शामिल- जेडीयू और शिवसेना में कुछ खास समानताएं है। दोनों ही पार्टियों ने पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर अकेले या नए सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। शिवसेना महाराष्ट्र चुनाव के ठीक बाद बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार में शामिल हो गई। वहीं जेडीयू ने बीजेपी के साथ वापस आने में करीब 2 साल का समय लिया। महाराष्ट्र में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं, जबकि बिहार में 2020 में चुनाव होंगे। शिवसेना और जेडीयू, दोनों ही बीजेपी से बेहतर डील हासिल करने के लिए चुनावों से काफी पहले खुद को तैयार करने में जुट गई हैं। तीन तलाक, आर्टिकल 370 पर नीतीश की लाइन अलग तीन तलाक, एनआरसी और आर्टिकल 370 जैसे बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल वादों पर नीतीश कुमार ने अलग रुख अपनाया है। ऐसी भी अटकलें हैं कि चुनाव के करीब आने पर वह अलग राग अपना सकते हैं। हालांकि, अगर पिछले चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि शिवसेना और जेडीयू, दोनों के पास बीजेपी के साथ बने रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसके अलावा इन राज्यों में राजनीतिक समीकरण अब बदल गए हैं और यहां अब बीजेपी बड़े दल के रूप में मौजूद है। पढ़ें: 2010 में बीजेपी-जेडीयू ने साथ में लड़ा था चुनाव 2010 में बीजेपी और जेडीयू ने साथ में चुनाव लड़ा था। कुल 243 सीटों वाले बिहार में जेडीयू को 115 और बीजेपी को 91 सीटें मिली थीं। उस समय जेडीयू को 22.58 पर्सेंट वोट और बीजेपी को 16.49 पर्सेंट वोट मिले थे। 2014 में नीतीश एनडीए से अलग हो गए और उन्होंने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा। इस चुनाव में जेडीयू का वोट पर्सेंट करीब 6 पर्सेंट घटकर 16.04 पर्सेंट पर आ गया और पार्टी को राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 2 पर जीत मिली। 2015 विधानसभा चुनावों में बीजेपी के वोट शेयर पर नहीं पड़ा असर दूसरी तरफ बीजेपी का वोट शेयर 16.50 पर्सेंट से बढ़कर करीब 30 पर्सेंट पहुंच गया और उसने राज्य की 22 सीटों पर जीत दर्ज की। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया। बीजेपी ने रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी जैसे छोटे सहयोगियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। महागठबंधन राज्य में सरकार बनाने में सफल रहा और जेडीयू को 16.83 पर्सेंट वोट शेयर के साथ 71 सीटें मिली। बीजेपी को 53 सीटें मिली थीं, हालांकि उसका वोट शेयर 24.5 पर्सेंट था। 2019 लोकसभा चुनावों में जेडीयू को हुआ जबरदस्त फायदा 2019 में करीब 10 साल बाद जेडीयू ने बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पार्टी ने न सिर्फ अपने हिस्से की 17 में 16 सीटों पर जीत दर्ज की, बल्कि उसका वोट शेयर भी 16.83 पर्सेंट से बढ़कर 21.82 पर्सेंट पहुंच गया। बीजेपी को अभी भी 24 पर्सेंट वोट मिले थे, जो बिहार की किसी भी पार्टी को मिले वोट से ज्यादा है। पढ़ें: शिवसेना को भी बीजेपी की जरूरत महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना ने 2009 का विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था। तब राज्य की 288 सीटों में से बीजेपी को 14 पर्सेंट वोट शेयर के साथ 46 और शिवसेना को 16 पर्सेंट वोट शेयर के साथ 44 सीटें मिली थी। 2014 के आम चुनाव में 28 पर्सेंट वोट शेयर के साथ बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बन गई और उसने 23 सीटें जीतीं। शिवसेना को 21 पर्सेंट वोट शेयर के साथ 18 सीटें मिली थीं, जिसने गठबंधन में उसकी भूमिका को 'बड़े भाई' से बदलकर एक क्षेत्रीय दल की कर दी। उसी साल हुए विधानसभा चुनाव को दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा। चुनाव में बीजेपी ने अपने 28 पर्सेंट के वोट शेयर को बरकरार रखते हुए 122 सीटें जीती, जबकि शिवसेना को 19 पर्सेंट वोट शेयर के साथ 63 सीटें मिलीं। बाद में दोनों ने मिलकर राज्य में सरकार बनाई। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ आते ही शिवसेना का वोट शेयर एक बार फिर से बढ़कर 23 पर्सेंट पहुंच गया और उसे 19 लोकसभा सीटों पर जीत मिली। जेडीयू-सेना दोनों को वोट शेयर के लिए बीजेपी की दरकार ये आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी किसी भी हालत में 25 से 30 पर्सेंट के वोट शेयर को बचा रखने में कामयाब रही है, जबकि जेडीयू और शिवसेना दोनों के बीजेपी के साथ आने पर उनके वोट शेयर में 4 से 6 पर्सेंट की बढ़ोतरी होती है। ऐसे में इन दोनों के लिए बीजेपी को नजरअंदाज करना काफी मुश्किल है।
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